Scoop is a "collaborative media application". It falls somewhere between a content management system, a web bulletin board system, and a weblog. Scoop is designed to enable your website to become a community. It empowers your visitors to be the producers of the site, contributing news and discussion, and making sure that the signal remains high. A scoop site can be run almost entirely by the readers. The whole life-cycle of content is reader-driven. They submit news, they choose what to post, and they can discuss what they post. Readers can rate other readers comments, as well, providing a collaborative filtering tool to let the best contributions float to the top. Based on this rating, you can also reward consistently good contributors with greater power to review potentially untrusted content. The real power of Scoop is that it is almost totally collaborative. Of course, as an admin, you also may pick and choose which tools you want the community to have, and which will be available to admins only. Administrators have a very wide range of customization and security management tools available. All of the administration of Scoop is done through the normal web interface. Scoop will seamlessly provide more options to site administrators, right in the normal site, so the tools you need are always right where you need them. Now, if you're still interested, why don't you try it out? You can download the latest tarball here: scoop_1.1.8.tar.gz Or, you can get more information on how to get the CVS version in the "Where can I get Scoop?" box on the left hand side of our front page We also have a list of sites that use Scoop, so you can see what others have done with it. |
Monday, November 15, 2010
What is Scoop?
Wednesday, November 10, 2010
Tuesday, November 2, 2010
काले धान कि ताकत
भारत के भ्रस्ताचारों कि फिर दुनिया में चर्चा है| कभी नोटों से भरा सूटकेश हवाई अड्डे पर पड़ा है तो कभी तलाशी में नोटों का अम्बार मिलता है कि देश me व्यापारियों ,udhyogpatiyo,नेताओ व ओकर्षाओं के पास kharbon का कला धान हैं|नेता रातो-रात करोडपति बन जाते है |आलीशान bhavan, सैंकड़ो एकड़ भूमि समेत बहुत सी ब्बेनामी संपतिया भी इन लोगो के पास है|यह वह धनराशी हैं जो स्विस अंक में nahi,बल्कि पने ही देश में काले धन्दों में लगी है |यह धनराशी इतनी है कि देश में १०० बड़े बिजली घर और गेल, भेल ,सेल जैसे कई बड़े उपकर्म
Saturday, October 30, 2010
फिल्म समीक्षा
करण जौहर की ‘वी आर फैमिली’ फिल्म हालांकि विदेशी लोकेशन, आकषर्क परिधान और संवादों से सजी हुई है, लेकिन इसमें कुछ भी नयापन नहीं है. इस फिल्म से निर्देशक सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अपने करियर की शुरुआत की है. यह फिल्म वर्ष 1998 में आयी जूलिया रॉबर्टस और सुसान सरांडोन की ‘स्टेप मॉम’ के पृष्ठभूमि पर बनी है.
फिल्म की शूटिंग ऑस्ट्रेलिया में की गयी है, जिससे इसके दृश्य काफी आकषर्क हैं. फिल्म का कथानक और अधिकांश संवाद ‘स्टेप मॉम’ फिल्म से लिया गया है जिसे भारतीय रंगों में रंगा गया है. इस फिल्म की कहानी माया (काजोल) उसके तलाकशुदा पति अमन (अर्जुन रामपाल) और उनके तीन बच्चे एलिया (अंचल मुंजाल) अनुष्का (नोमीनाथ गिनसबुर्ग) और अंजलि (दिया सोनेचा) की है.
माया और अमन तीन वर्ष से एक-दूसरे से अलग होने के बाद खुशी से अपने परिवार और बच्चों के साथ रह रहे हैं. कहानी में एक नया मोड़ तब आता है जब अमन अपनी गर्लफ्रेंड श्रेया (करीना कपूर) से बच्चों को मिलवाता है. बच्चे श्रेया को पसंद नहीं करते हैं. माया भी अपने बच्चों की जिंदगी में श्रेया के आने से खुश नहीं होती है, लेकिन जब माया को लगता है कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है तब वह अनिच्छा से श्रेया को जगह देने का फैसला करती है.|
फिल्म की शूटिंग ऑस्ट्रेलिया में की गयी है, जिससे इसके दृश्य काफी आकषर्क हैं. फिल्म का कथानक और अधिकांश संवाद ‘स्टेप मॉम’ फिल्म से लिया गया है जिसे भारतीय रंगों में रंगा गया है. इस फिल्म की कहानी माया (काजोल) उसके तलाकशुदा पति अमन (अर्जुन रामपाल) और उनके तीन बच्चे एलिया (अंचल मुंजाल) अनुष्का (नोमीनाथ गिनसबुर्ग) और अंजलि (दिया सोनेचा) की है.
माया और अमन तीन वर्ष से एक-दूसरे से अलग होने के बाद खुशी से अपने परिवार और बच्चों के साथ रह रहे हैं. कहानी में एक नया मोड़ तब आता है जब अमन अपनी गर्लफ्रेंड श्रेया (करीना कपूर) से बच्चों को मिलवाता है. बच्चे श्रेया को पसंद नहीं करते हैं. माया भी अपने बच्चों की जिंदगी में श्रेया के आने से खुश नहीं होती है, लेकिन जब माया को लगता है कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है तब वह अनिच्छा से श्रेया को जगह देने का फैसला करती है.|
Friday, October 29, 2010
राधा कुण्ड कैसे बना
मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर्व द्वापरयुग में श्रीकृष्ण और राधा की लीला से संबंधित है। यह कथा बड़ी रोचक है।
पहले बना श्यामकुंड : राधा कुंड श्याम कुंड के बनने का परिणाम था। एक कथा के अनुसार, कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए ब्रज में अरिष्टासुर को भेजा। भयानक सांड़ का रूप धारण किए उस दैत्य ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया, परंतु वह उनके हाथों मारा गया। अरिष्टासुर का वध करने के बाद जब रात में श्रीकृष्ण राधारानी और गोपियों के साथ रासस्थल पहुंचे, तो भगवती राधा ने सखियों के उकसाने पर कहा कि आज आपने एक वृषभ की हत्या की है, अत: आपको प्रायश्चित करना होगा।
कथा के अनुसार, यह सुनकर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण करके उसमें भूमंडल के सारे तीर्थो का आवाहन कर दिया। देखते ही देखते सारे तीर्थो का जल कुंड में आ गया। श्रीकृष्ण ने कुंड में स्नान किया, जिसका नाम श्यामकुंड पड़ा।
राधारानी ने बनाया राधाकुंड : कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के कुंड बनाने पर राधाजी अलग स्थान पर कंगन से गड्ढा खोदने लगीं। उनकी सखियां भी उनके साथ जुट गई। वहां भी एक कुंड बन गया, परंतु उसमें जल भरने की समस्या थी। राधा अपनी सखियों के साथ घड़े लेकर मानसीगंगा से जब पानी भरकर लाने को उद्यत हुईं, तो श्रीकृष्ण के संकेत पर समस्त तीर्थ श्यामकुंड की सीमा तोड़कर राधाकुंड में प्रविष्ट हो गए।
ब्रज के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. वसंत यामदग्नि के अनुसार, 'यह घटना कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की आधी रात को घटी थी। राधाकुंड के निर्माण का कार्य संपन्न होने से प्रसन्न सखियों के मुख से 'आहा वोही' शब्दों का उच्चारण हुआ था, जो बाद में अपभ्रंश होकर अहोई हो गया। इसी कारण कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि अहोई अष्टमी कहलाने लगी।'
इस युग में कुंडों की खोज : कहा जाता है कि द्वापरयुग में बने ये दोनों कुंड श्रीकृष्ण के प्रपोत्र परपोते वज्रनाभ द्वारा महर्षि शांडिल्य की सहायता से खोजकर ठीक कराए गए। कालांतर में ये कुंड पुन: लुप्त हो गए। श्री चैतन्य महाप्रभु ने कालीखेत और गौरीखेत नाम के दो स्थानों, जहां थोड़ा-थोड़ा जल था, को ही क्रमश: श्यामकुंड और राधाकुंड बताया। बाद में श्री रघुनाथदास गोस्वामी जगन्नाथ पुरी से आकर यहां भजन करने लगे। कहते हैं कि मुगल सम्राट अकबर अपनी बहुत बड़ी सेना लेकर यहां से गुजर रहा था। उसकी सारी सेना, हाथी, घोड़े, ऊंट सभी प्यासे थे। अकबर यह देखकर हैरान रह गया कि उसकी सारी सेना के पानी पी लेने के बावजूद सरोवरों में जल का स्तर बिल्कुल नहीं गिरा। कुछ समय बाद बद्रीनाथ की यात्रा कर रहे एक धनी सेठ ने ब्रज में जाकर श्रीरघुनाथदास गोस्वामी के माध्यम से कुंडों का जीर्णोद्धार किया।
राधा-कृष्ण की तरह ही राधा कुंड और श्याम कुंड भी एक-दूसरे के पूरक हैं। कार्तिक के कृष्णपक्ष की अष्टमी अहोई अष्टमी राधाकुंड के निर्माण की तिथि होने के कारण इस दिन यहां मुख्य स्नान होता है। अहोई अष्टमी की अर्धरात्रि इस स्नान का पर्वकाल माना जाता है।
पहले बना श्यामकुंड : राधा कुंड श्याम कुंड के बनने का परिणाम था। एक कथा के अनुसार, कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए ब्रज में अरिष्टासुर को भेजा। भयानक सांड़ का रूप धारण किए उस दैत्य ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया, परंतु वह उनके हाथों मारा गया। अरिष्टासुर का वध करने के बाद जब रात में श्रीकृष्ण राधारानी और गोपियों के साथ रासस्थल पहुंचे, तो भगवती राधा ने सखियों के उकसाने पर कहा कि आज आपने एक वृषभ की हत्या की है, अत: आपको प्रायश्चित करना होगा।
कथा के अनुसार, यह सुनकर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण करके उसमें भूमंडल के सारे तीर्थो का आवाहन कर दिया। देखते ही देखते सारे तीर्थो का जल कुंड में आ गया। श्रीकृष्ण ने कुंड में स्नान किया, जिसका नाम श्यामकुंड पड़ा।
राधारानी ने बनाया राधाकुंड : कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के कुंड बनाने पर राधाजी अलग स्थान पर कंगन से गड्ढा खोदने लगीं। उनकी सखियां भी उनके साथ जुट गई। वहां भी एक कुंड बन गया, परंतु उसमें जल भरने की समस्या थी। राधा अपनी सखियों के साथ घड़े लेकर मानसीगंगा से जब पानी भरकर लाने को उद्यत हुईं, तो श्रीकृष्ण के संकेत पर समस्त तीर्थ श्यामकुंड की सीमा तोड़कर राधाकुंड में प्रविष्ट हो गए।
ब्रज के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. वसंत यामदग्नि के अनुसार, 'यह घटना कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की आधी रात को घटी थी। राधाकुंड के निर्माण का कार्य संपन्न होने से प्रसन्न सखियों के मुख से 'आहा वोही' शब्दों का उच्चारण हुआ था, जो बाद में अपभ्रंश होकर अहोई हो गया। इसी कारण कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि अहोई अष्टमी कहलाने लगी।'
इस युग में कुंडों की खोज : कहा जाता है कि द्वापरयुग में बने ये दोनों कुंड श्रीकृष्ण के प्रपोत्र परपोते वज्रनाभ द्वारा महर्षि शांडिल्य की सहायता से खोजकर ठीक कराए गए। कालांतर में ये कुंड पुन: लुप्त हो गए। श्री चैतन्य महाप्रभु ने कालीखेत और गौरीखेत नाम के दो स्थानों, जहां थोड़ा-थोड़ा जल था, को ही क्रमश: श्यामकुंड और राधाकुंड बताया। बाद में श्री रघुनाथदास गोस्वामी जगन्नाथ पुरी से आकर यहां भजन करने लगे। कहते हैं कि मुगल सम्राट अकबर अपनी बहुत बड़ी सेना लेकर यहां से गुजर रहा था। उसकी सारी सेना, हाथी, घोड़े, ऊंट सभी प्यासे थे। अकबर यह देखकर हैरान रह गया कि उसकी सारी सेना के पानी पी लेने के बावजूद सरोवरों में जल का स्तर बिल्कुल नहीं गिरा। कुछ समय बाद बद्रीनाथ की यात्रा कर रहे एक धनी सेठ ने ब्रज में जाकर श्रीरघुनाथदास गोस्वामी के माध्यम से कुंडों का जीर्णोद्धार किया।
राधा-कृष्ण की तरह ही राधा कुंड और श्याम कुंड भी एक-दूसरे के पूरक हैं। कार्तिक के कृष्णपक्ष की अष्टमी अहोई अष्टमी राधाकुंड के निर्माण की तिथि होने के कारण इस दिन यहां मुख्य स्नान होता है। अहोई अष्टमी की अर्धरात्रि इस स्नान का पर्वकाल माना जाता है।
नहीं पहुंचे किसानों कि सुध लेने
सिरसा २९ अक्टूबर (मनप्रीत,नरेंदर,हरविंदर,बेअंत ) खेरपुर और वेघ्वाला गावों के किसानो को आज शहर के लघुसचिवालय के बाहर धरना लगाये हुए 32 दिन हो चुके है|लेकिन अभी तक सरकार के कानो तक जू तक नहीं रेंगती दिखाई पड़ रही है|
जब हमने जनकल्याण समिति के सदस्यों एडवोकेट अमरिंदर जीत सिंह, दर्शन सिंह और अमरजीत सिंह से बात कि तो उन्होंने बताया कि बीती 18 तारीख को संसद अशोक तंवर के साथ शहर के उपायुक्त सिजी राजिनिकान्थन भी उनके पास आये थे ,वो उन्हें जल्द ही कुछ हल करने का आश्वासन देकर चले गए लेकिन उसके बाद फिर कोर्ट भी उनकी सुध लेने नहीं आये|
किसानो का कहना है कि अगर सरकार अधिग्रहण करना ही चाहती हैं तो उपजाऊ भूमि को क्यों हथिया रही है |अगर सरकार ने अपना अपना रवैया नहीं बदला तो उनका आन्दोलन जारी रहेगा और वे सरकार कि मनमानियों को बर्दास्त नहीं करेंगे |
जब हमने जनकल्याण समिति के सदस्यों एडवोकेट अमरिंदर जीत सिंह, दर्शन सिंह और अमरजीत सिंह से बात कि तो उन्होंने बताया कि बीती 18 तारीख को संसद अशोक तंवर के साथ शहर के उपायुक्त सिजी राजिनिकान्थन भी उनके पास आये थे ,वो उन्हें जल्द ही कुछ हल करने का आश्वासन देकर चले गए लेकिन उसके बाद फिर कोर्ट भी उनकी सुध लेने नहीं आये|
किसानो का कहना है कि अगर सरकार अधिग्रहण करना ही चाहती हैं तो उपजाऊ भूमि को क्यों हथिया रही है |अगर सरकार ने अपना अपना रवैया नहीं बदला तो उनका आन्दोलन जारी रहेगा और वे सरकार कि मनमानियों को बर्दास्त नहीं करेंगे |
Tuesday, October 26, 2010
फिल्म रिवीऊ ऑफ़ आक्रोश
इससे पहले
प्रोड्यूसर:कुमार मंगत
डायरेक्टर:प्रियदर्शन
कलाकार:अजय देवगन,अक्षय खन्ना,बिपाशा बासु,परेश रावल,रीमा सेन
रेटिंग:2
ऑनर किलिंग जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाना कोई आसान काम नहीं है और जब प्रियदर्शन जैसे मंझे हुए निर्देशक ऐसे मुद्दे पर फिल्म बनाएं तो उम्मीद लगाना लाजिमी है|ऐसे में यह सवाल उठाना कि क्या यह फिल्म समाज में फैली इस कुरीति को दर्शाने में सफल हो पाई है? जवाब है नहीं प्रियदर्शन की पिछली दो फिल्मों(खट्टा मीठा और दे दना दन)की तरह आक्रोश भी एक कमज़ोर फिल्म ही साबित हुई है|
अच्छा विषय होने के बावजूद भी यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होने में नाकामयाब नज़र आती है| कमज़ोर स्क्रीनप्ले और उबाऊ निर्देशन इस फिल्म को बेदम बना देते हैं|फिल्म की शुरुआत में दिल्ली और झांझर के चार मेडिकल स्टुडेंट्स को अगवा कर लिया जाता है|दिल्ली यूनिवर्सिटी के इन मेडिकल छात्रों को बिहार के झांझर से अगवा कर लिया जाता है|इन लड़कों को खोजने के लिए सरकार दो सीबीआई अफसरों को जिम्मेदारी सौंपती है|
सीबीआई अफसरों की भूमिका निभाई है सिद्धांत चतुर्वेदी बने (अक्षय खन्ना)और प्रताप कुमार बने(अजय देवगन)ने|इस हाइ प्रोफाइल केस मिलने से उत्साहित सिद्धांत को शुरुआत में यह केस जितना आसान नजर आता है दरसल उतना होता नहीं है| इस दौरान उसका राजनीतिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार से सामना होता है जिससे उसके होश उड़ जाते हैं|
अजातशत्रु(परेश रावल)एक भ्रष्ट पुलिस वाले की भूमिका में हैं जो झांझर में अपनी एक शूल सेना का मुखिया भी है जो समाज के ठेकेदार होने के नाते हॉनर किलिंग कर मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं|
सिद्धांत और प्रताप कैसे इस समस्या को सुलझा पाते हैं और इसमें गीता बनी बिपाशा बासु कैसे उनकी मदद करती हैं|फिल्म में यही दिखाया गया है|गीता पहले प्रताप(अजय देवगन)की प्रेमिका रह चुकी है मगर उसकी शादी जबरदस्ती अजातशत्रु से कर दी जाती है|
फिल्म मध्य में थोड़ी दिलचस्प होती है मगर बाद में कहानी कमज़ोर पड़ जाती है|फिल्म के दूसरे भाग में सबसे चौंकाने वाली बात तब नज़र आती है जब अचानक समाज में अभी तक हर समस्या पर आँख मूंदकर बैठे लोग आवाज़ उठाने लग जाते हैं और न्याय मांगने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं|
कमज़ोर स्क्रीन प्ले के चलते फिल्म की कहानी किस दिशा में जा रही है यह समझ ही नहीं आता|फिल्म का कमज़ोर निर्देशन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है|निर्देशक अच्छी कहानी पर पकड़ नहीं बना पाए|फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं मगर एडिटिंग और अच्छी हो सकती थी|
अभिनय की बात की जाये तो अजय देवगन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि गंभीर किरदार निभाने के मामले में वह लाजवाब हैं|अक्षय खन्ना अपने किरदार में बिल्कुल प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं|बिपाशा बासु का भी रोल कोई खास नहीं है हालांकि काफी राज़ उनकी ही मदद से खुलते हैं मगर उनके हिस्से में ज्यादा डायलॉग्स नहीं है|परेश रावल ने अजातशत्रु के रोल में जान डाल दी है| वहीँ रीमा सेन छोटे मगर प्रभावशाली रोल में नज़र आई हैं|कुल मिलकर देखा जाए तो फिल्म कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएं|
डायरेक्टर:प्रियदर्शन
कलाकार:अजय देवगन,अक्षय खन्ना,बिपाशा बासु,परेश रावल,रीमा सेन
रेटिंग:2
ऑनर किलिंग जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाना कोई आसान काम नहीं है और जब प्रियदर्शन जैसे मंझे हुए निर्देशक ऐसे मुद्दे पर फिल्म बनाएं तो उम्मीद लगाना लाजिमी है|ऐसे में यह सवाल उठाना कि क्या यह फिल्म समाज में फैली इस कुरीति को दर्शाने में सफल हो पाई है? जवाब है नहीं प्रियदर्शन की पिछली दो फिल्मों(खट्टा मीठा और दे दना दन)की तरह आक्रोश भी एक कमज़ोर फिल्म ही साबित हुई है|
अच्छा विषय होने के बावजूद भी यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होने में नाकामयाब नज़र आती है| कमज़ोर स्क्रीनप्ले और उबाऊ निर्देशन इस फिल्म को बेदम बना देते हैं|फिल्म की शुरुआत में दिल्ली और झांझर के चार मेडिकल स्टुडेंट्स को अगवा कर लिया जाता है|दिल्ली यूनिवर्सिटी के इन मेडिकल छात्रों को बिहार के झांझर से अगवा कर लिया जाता है|इन लड़कों को खोजने के लिए सरकार दो सीबीआई अफसरों को जिम्मेदारी सौंपती है|
सीबीआई अफसरों की भूमिका निभाई है सिद्धांत चतुर्वेदी बने (अक्षय खन्ना)और प्रताप कुमार बने(अजय देवगन)ने|इस हाइ प्रोफाइल केस मिलने से उत्साहित सिद्धांत को शुरुआत में यह केस जितना आसान नजर आता है दरसल उतना होता नहीं है| इस दौरान उसका राजनीतिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार से सामना होता है जिससे उसके होश उड़ जाते हैं|
अजातशत्रु(परेश रावल)एक भ्रष्ट पुलिस वाले की भूमिका में हैं जो झांझर में अपनी एक शूल सेना का मुखिया भी है जो समाज के ठेकेदार होने के नाते हॉनर किलिंग कर मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं|
सिद्धांत और प्रताप कैसे इस समस्या को सुलझा पाते हैं और इसमें गीता बनी बिपाशा बासु कैसे उनकी मदद करती हैं|फिल्म में यही दिखाया गया है|गीता पहले प्रताप(अजय देवगन)की प्रेमिका रह चुकी है मगर उसकी शादी जबरदस्ती अजातशत्रु से कर दी जाती है|
फिल्म मध्य में थोड़ी दिलचस्प होती है मगर बाद में कहानी कमज़ोर पड़ जाती है|फिल्म के दूसरे भाग में सबसे चौंकाने वाली बात तब नज़र आती है जब अचानक समाज में अभी तक हर समस्या पर आँख मूंदकर बैठे लोग आवाज़ उठाने लग जाते हैं और न्याय मांगने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं|
कमज़ोर स्क्रीन प्ले के चलते फिल्म की कहानी किस दिशा में जा रही है यह समझ ही नहीं आता|फिल्म का कमज़ोर निर्देशन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है|निर्देशक अच्छी कहानी पर पकड़ नहीं बना पाए|फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं मगर एडिटिंग और अच्छी हो सकती थी|
अभिनय की बात की जाये तो अजय देवगन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि गंभीर किरदार निभाने के मामले में वह लाजवाब हैं|अक्षय खन्ना अपने किरदार में बिल्कुल प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं|बिपाशा बासु का भी रोल कोई खास नहीं है हालांकि काफी राज़ उनकी ही मदद से खुलते हैं मगर उनके हिस्से में ज्यादा डायलॉग्स नहीं है|परेश रावल ने अजातशत्रु के रोल में जान डाल दी है| वहीँ रीमा सेन छोटे मगर प्रभावशाली रोल में नज़र आई हैं|कुल मिलकर देखा जाए तो फिल्म कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएं|
Monday, October 25, 2010
कोल इंडिया के आइपीओ से निवेशको की तिजोरी भरने के आसार
मुंबई २५ अक्तूबर ( निधि )|जिस तरह से रिलायंस कंपनी के आईपीओ दुनिया में तूफ़ान मचाकर रख दिया था |उसी प्रकार कोल इंडिया भी अपने आइपीओ बाज़ार में उतारकर शेयर मार्किट में हडकंप मचाने वाली हैं लेकिन कोल इंडिया की और से आशा की जा रही हैं कि इन शेयरों के आबंटन के बाद विदेशी संस्थागत निवेशकों कि तिजोरी नकदी से लबखब भरी होगी|
कंपनी के आइपी ओ में शेयरों के लिए भारी होड़ थी और निवेशकों ने अच्छे खासे शेयर खरीदें हैं ||संस्थागतो ने कोल इंडिया में अभी तक १.२१ करोड़ लाख रुपये लगा दिए हैं |बाज़ार में हिस्सा लेने वालों का मानना है कि इन पैसों का कुछ हिस्सा भारतीय ,शेयर बाजारों में लगने वाला हैं और कुछ विशेषज्ञों का मानना हैं कि पूरी कंपनी के अगले आइपीओ के लिए बचाकर रखी जाएगी |
कोल इंडिया के निर्गम का मूल्य सरकार जल्द ही तय करेगी |कंपनी का बाज़ार पूंजीकरण मापा जाये तो यह लगभग १.५५ लाख करोड़ रूपये होगा |इसके बाद यह सातवी सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनी बन जाएगी |
संस्थागत निवेशकों ने इस निर्गम में १.२१ लाख करोड़ रुपये कि बोली लगाई हैं और ६९६६ करोड़ रुपये के शेयर ही आबंटित किये जाने हैं |इस तरह उनके पास १.१३ लाख करोड़ रुपये बचेंगे|
कंपनी के आइपी ओ में शेयरों के लिए भारी होड़ थी और निवेशकों ने अच्छे खासे शेयर खरीदें हैं ||संस्थागतो ने कोल इंडिया में अभी तक १.२१ करोड़ लाख रुपये लगा दिए हैं |बाज़ार में हिस्सा लेने वालों का मानना है कि इन पैसों का कुछ हिस्सा भारतीय ,शेयर बाजारों में लगने वाला हैं और कुछ विशेषज्ञों का मानना हैं कि पूरी कंपनी के अगले आइपीओ के लिए बचाकर रखी जाएगी |
कोल इंडिया के निर्गम का मूल्य सरकार जल्द ही तय करेगी |कंपनी का बाज़ार पूंजीकरण मापा जाये तो यह लगभग १.५५ लाख करोड़ रूपये होगा |इसके बाद यह सातवी सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनी बन जाएगी |
संस्थागत निवेशकों ने इस निर्गम में १.२१ लाख करोड़ रुपये कि बोली लगाई हैं और ६९६६ करोड़ रुपये के शेयर ही आबंटित किये जाने हैं |इस तरह उनके पास १.१३ लाख करोड़ रुपये बचेंगे|
Wednesday, October 20, 2010
Monday, October 18, 2010
Robot film Review
Tamil film director S. Shankar is well known for creating some innovative (Jeans), some intelligent (Anniyan) and some hard-hitting (Mudhalavan, later remade by himself as the equally impressive Nayak) dramas in his illustrious career in Chennai, and I’ve been following his work for the simple fact that he is one of the only filmmakers that can combine entertainment with films having a socially relevant underlay. Apart from the terribly written and over the top executed Sivaji: The Boss, Shankar has given each project a certain commendable freshness with his hatke scripts. So does his latest project, Robot (the Hindi dubbed version of Enthiran) work? Dr. Vaseegharan (Rajnikanth) creates a humanoid robot Chitti (Rajnikanth) in hope of sending him to the army. Chitti becomes Vaseegharan’s girfriend Sana’s (Aishwayra Rai Bachchan) apple of the eye. Depressed after being rejected by the examiners on the basis of having no sense of right or wrong, he suddenly tries to insert feelings into Chitti, and all hell breaks loose. First up, the execution doesn’t help if the script itself has intermittent loose ends, and this was noticed in Sivaji: The Boss with every scene created just for gloating on Rajnikanth’s star power – a phenomenon that made the movie a blockbuster but didn’t do more than make money. This movie, on the other hand, is so well written and visualized by the film-maker himself, that one tends to become glued to the seat till the very end of the film. For the first time, Rajnikanth’s character(s) have been so strongly written that you tend to wonder if this really is a Rajni film. Also, Rajnikanth didn’t have any flashy introductory scene and post the titles, the movie started almost immediately, which surprised me and is bound to surprise those yet to watch it. This film reaffirms that Shankar still has the capability to write fresh scripts and that his imagination never ceases. In fact most of the scenes hold a very Shankar trademark, which further proves that he is the only film-maker in Tamil cinema that the world should be proud of because he has the ability to combine unapologetic, unadulterated entertainment with something hatke (and without showing a trace of unpretentiousness in the process). Science fiction extravaganzas are usually the kind that cater for the big screen audience by having a certain flawlessness in technicality, and most Hollywood and Hindi movies tend to forget the storyline and focus on just the technical aspects. But as previously stated, this movie has a strong script and is only upped by a technically outstanding finish. Terrific camerawork and cinematography, jaw-dropping visual effects and action sequences, and commendable editing give this movie an international finish. Music by A. R. Rahman is the kind that is situational and will earn a lot of detestation from the listeners before they watch the film but would like once they’ve seen the film. I would still like to state that the quality of Rahman’s music isn’t up to the mark here. As far as the performances are concerned, Rajnikanth has star power, and Shankar has intelligently woven together such a script that Rajni ends up being the larger part of each frame, right from the start to end. Aishwarya looks stunning like never before, and plays her part, despite it being rather small and insignificant. Danny Denzongpa is convincing as Rajnikanth’s nemesis. Others are good. Not that the movie doesn’t have hiccups – and there’s quite a few here. Firstly, the movie is close to three hours long, and the editor should have helped snip quite a few unnecessary portions off the film. Though the songs have stunning visuals, they abruptly make their entry, thereby acting as speed-breakers in an otherwise fast paced movie. Also inevitably, dubbed films take off the charm exuded by the film in its original language. Nevertheless, this is one of the most tolerable Hindi films dubbed from Tamil of late. Overall, just like Wanted and Dabangg were ego-trips of Salman Khan for his fans, Robot shares a similar relationship with Rajnikanth towering the film, only this time backed with a solid story and screenplay, minus the overrated “entry” scene, much to everyone’s relief. Sure, there are quite a few hiccups, but those can easily be ignored for the amazing visual effects and the jaw dropping action, making this the biggest Indian film ever to be made (160 crores budget). Hollywood usually combines the elements of this film to create a summer blockbuster. Summer’s about to end, but Robot proves the heat hasn’t gone yet! Highly recommended for the big-screen experience! | |
धान पर केंद्र से माँगा बोनस :हुड्डा
18 अक्तूबर, रोहतक(निधि/रेखा)| राज्य में बाढ़ के कारण प्रभावित हुई धान की फसल को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र से 100 रूपए प्रति किवंटल के हिसाब से बोनस की मांग की हैं | मुख्यमंत्री ने राज्य की जनता को दशहरे की शुभकामनाए देते हुए लोगो से वैर और अहंकार रुपी रावण के खात्मे की अपील की |
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रविवार को कैनाल रेस्ट हाउस में लोगो की समस्याएं सुनी और आपसी सहयोग और भाईचारे की मांग की | केंद्र सरकार से 100 रुपये प्रति किवंटल बोनस की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से यही प्रयास रहा है कि किसानो को उनकी फसलों का उचित दाम मिले | हुड्डा ने कहा कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद लगातार किसानों की फसलों के दाम लगातार बढ़ रहें हैं | साथ ही साथ उन्होंने कहा कि धान उत्पादक किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 100 रुपये प्रति किवंटल अलग से बोनस दिया जायेगा | इसके लिए अधिकारीयों को निर्देश जारी कर कहा गया कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े | 1 अक्तूबर से अब तक लगभग 10 लाख टन धान ख़रीदा जा चुका है |
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि किसानों को लाभ पहुचानें के उद्देश्य से विभिन्न फसलों के उन्नत बीजों पर उन्हें अनुदान भी दिया जा रहा हैं |
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रविवार को कैनाल रेस्ट हाउस में लोगो की समस्याएं सुनी और आपसी सहयोग और भाईचारे की मांग की | केंद्र सरकार से 100 रुपये प्रति किवंटल बोनस की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से यही प्रयास रहा है कि किसानो को उनकी फसलों का उचित दाम मिले | हुड्डा ने कहा कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद लगातार किसानों की फसलों के दाम लगातार बढ़ रहें हैं | साथ ही साथ उन्होंने कहा कि धान उत्पादक किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 100 रुपये प्रति किवंटल अलग से बोनस दिया जायेगा | इसके लिए अधिकारीयों को निर्देश जारी कर कहा गया कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े | 1 अक्तूबर से अब तक लगभग 10 लाख टन धान ख़रीदा जा चुका है |
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि किसानों को लाभ पहुचानें के उद्देश्य से विभिन्न फसलों के उन्नत बीजों पर उन्हें अनुदान भी दिया जा रहा हैं |
Saturday, October 16, 2010
नहीं मिल रहे हैं दोगुनी दिहाड़ी पर भी मजदूर
सिरसा ,16 अक्टूबर (दर्पण कम्बोज)\अक्टूबर मास में धान की कटाई का कार्य जोरो पर हैं ,लेकिन वहीँ बिहार में चुनाव होने के कारण लोगों को प्रयाप्त श्रमिकी नहीं मिल पा रहा हैं जो अक्सर बिहार से आते हैं|
पंजाब तथा हरियाणा में अब धान की कटाई का कार्य चल रहा हैं लेकिन बिहार में चुनाव होने के कारण बिहार से श्रमिक बहुत ही कम आ रहे हैं|
सिरसा शहर के स्थानीय रेलवे स्टेशन पर किसानों का तांता लगा हुआ हैं जो भी श्रमिक रेल के द्वारा बिहार से आ रहे हैं डेढ़ और ढाई गुना मजदूरी पर लेकर जा रहे हैं |रेलवे स्टेशन पर मौजूद किसान मग्घर सिंह , बूटा सिंह , तरसेम आदि ने बताया की अब धान की फसल पक कर तैयार हो गई हैं अगर उन्हें समय पर नहीं कटा गया तो उन्हें बहुत ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा| इसीलिए अगर उन्हें जयादा मजदूरी देकर भी धान कटवाना पड़ेगा तो वो कटवाएँगे |
पंजाब तथा हरियाणा में अब धान की कटाई का कार्य चल रहा हैं लेकिन बिहार में चुनाव होने के कारण बिहार से श्रमिक बहुत ही कम आ रहे हैं|
सिरसा शहर के स्थानीय रेलवे स्टेशन पर किसानों का तांता लगा हुआ हैं जो भी श्रमिक रेल के द्वारा बिहार से आ रहे हैं डेढ़ और ढाई गुना मजदूरी पर लेकर जा रहे हैं |रेलवे स्टेशन पर मौजूद किसान मग्घर सिंह , बूटा सिंह , तरसेम आदि ने बताया की अब धान की फसल पक कर तैयार हो गई हैं अगर उन्हें समय पर नहीं कटा गया तो उन्हें बहुत ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा| इसीलिए अगर उन्हें जयादा मजदूरी देकर भी धान कटवाना पड़ेगा तो वो कटवाएँगे |
3 Idiots Review
December 24th, 2009
Movie Review: 3 idiots; Starring: Aamir Khan, Kareena Kapoor, R. Madhavan, Sharman Joshi & Boman Irani; Director: Rajkumar Hirani; Rating: **** – Superb!!
Directed by Rajkumar Hirani the flick opens with Farhan(R. Madhavan) and Raju (Sharman Joshi) beginning a journey in search of their lost friend Ranchoddas Shaymaldas Chajaad (Aamir Khan) who leaves college all of sudden.
The movie proceeds through narrations that take you into the flashback when Rancho, Farhan and Raju arrive at a premier engineering institute to begin their course.
The three are roommates and go about their life at college in a lively way occasionally Raju and Farhan being worried about Rancho’s antiques.
The so called “villain” of the flick whose ways are against that of Rancho is the Dean of the college Viru Sahastrabuddhe (Boman Irani). In addition, to make matters worse Rancho happens to find love in his daughter Pia (Kareena Kapoor).
The movie has some really hilarious moments with wedding reception mayhem of Viru’s oldest daughter played by Mona Singh, Raju’s father being reached to the hospital in a very funny way on a two-wheeler and so on.
The first half keeps you at wits end. But, enter second half and you are no longer given the same experience of the first half. The end stretches a bit too long and some things are just too away from spontaneity.
The music is light and entertaining. On the whole a decent flick. Only time will tell if it joins the ranks of Aamir Khan’s other blockbuster movies.
3 Idiots works and how! With a good grip on emotions and entertainment, 3 Idiots is the biggest hit of 2009 for sure. Take it from us.
Directed by Rajkumar Hirani the flick opens with Farhan(R. Madhavan) and Raju (Sharman Joshi) beginning a journey in search of their lost friend Ranchoddas Shaymaldas Chajaad (Aamir Khan) who leaves college all of sudden.
The movie proceeds through narrations that take you into the flashback when Rancho, Farhan and Raju arrive at a premier engineering institute to begin their course.
The three are roommates and go about their life at college in a lively way occasionally Raju and Farhan being worried about Rancho’s antiques.
The so called “villain” of the flick whose ways are against that of Rancho is the Dean of the college Viru Sahastrabuddhe (Boman Irani). In addition, to make matters worse Rancho happens to find love in his daughter Pia (Kareena Kapoor).
The movie has some really hilarious moments with wedding reception mayhem of Viru’s oldest daughter played by Mona Singh, Raju’s father being reached to the hospital in a very funny way on a two-wheeler and so on.
The first half keeps you at wits end. But, enter second half and you are no longer given the same experience of the first half. The end stretches a bit too long and some things are just too away from spontaneity.
The music is light and entertaining. On the whole a decent flick. Only time will tell if it joins the ranks of Aamir Khan’s other blockbuster movies.
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नकली मावा व मिलावटी घी बनाने की फैक्ट्री पकड़ी
- सैनीपुरा में आरोपी को रंगे हाथों पकड़ा
- 300 किलो नकली मावा व 40 किलो नकली घी bramad
एस पी को स्पेशल टीम ने एस आइ सुरेन्द्र कुमार के नेतृत्व में सिसाय रोड पर स्थित सैनीपुरा के एक मकान में नकली मावा व नकली देसी घी बनाते हुए सैनीपुरा निवासी विजय सैनी को रंगे हाथों पकड़ा जिसके कब्जे से करीब 300 किलो नकली मावा व करीब 40 किलो नकली घी बरामद किया |इसके अलावा नकली मावा बनाने वाले केमिकल आदि भी बरामद किये हैं |
विजय सैनी बाकायदा नकली मावा बनाने वाली फैक्ट्री पिछले करीब ढाई साल से बेखोफ चला रहा था |मौके पर पहुंचे ए एस पी अभिषेक गर्ग ने बताया की पुलिस को मिली एक गुप्त सूचना के आधार पर यह चाप मारा गया हैं |उन्होंने बताया की पुलिस ने त्योहारों के मद्देनज़र लोगों के स्वास्थ्य की परवाह करते हुए नकली घी व नकली मावा बनाने वालों पर नकेल कसी हैं |पुलिस ने मौके पर नकली मावा बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायन , रंगकाट , दूध पावडर व चाक मिटटी पावडर आदि कई प्रकार के रसायन बरामद किये हैं जिनके सेवन से आम जनता के सवास्थ्य पर कुप्रभाव छोड़ते हैं |उन्होंने बताया की नकली मावा इनको काफी सस्ता तैयार हो जाता है जिसे यह लोग काफी मुनाफा लेकर सप्लाई करते हैं |विजय के अनुसार वह अपना सारा माल बहादुरगढ़ में परम मिठाई की दुकानपर बेचता हैं जिसकी सप्लाई वह हफ्ते में दो बार करता हैं तथा नकली देसी घी वह आस पास के शेत्रमें बेच देता हैं |पुलिस ने आवश्यक वास्तु अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर चान बीन शुरू कर दी हैं |
Wednesday, October 13, 2010
असमंजस में किशोर मन, इम्तिहान का कर रहा जतन
nidhi jain
बारहवीं कक्षा का दिव्यांशु प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में बैठने के लिए लगभग डेढ़ माह से बेताब हो रहा है। उसे अब डर-सा लगने लगा है कि कहीं उसकी तैयारी पर तीसरी बार भी पानी न फिर जाए। उसे यह चिंता भी खाए जा रही है कि यूं ही अगर परीक्षाएं लेट चलती रही तो कदाचित बारहवीं बोर्ड का परीक्षा परिणाम पर बुरा असर न पड़ जाए। पुख्ता आधार पर टिकी छात्र-छात्राओं की आशंका को हालांकि बोर्ड के अधिकारी निर्मूल बता रहे हैं। इसका सहज अंदाजा यूं लगाया जा सकता है कि तमाम अगर-मगर के बीच शिक्षा विभाग व बोर्ड परीक्षाओं के आयोजन को लेकर कमर कस चुका है।
दरअसल, हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड के अधीन आयोजित होने वाली प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं दो बार स्थगित हो चुकी हैं। 15 सितंबर की निर्धारित तिथि को आगे बढ़ाकर 22 सितंबर किया गया और फिर अब 14 अक्टूबर से आरंभ होंगी ये परीक्षाएं। कभी बाढ़ तो कभी कुछ और बहाना बाधक बना तो ये परीक्षाएं लगभग एक माह से अधिक लेट हो गई। लाजिमी तौर पर विद्यार्थियों को अपनी तैयारियां कई बार टटोलनी पड़ी है। अब जबकि एकबार फिर नये सिरे परीक्षा की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा तो ऐसे में अनिश्चितता किशोर मन को आशंकित कर रही जो स्वाभाविक भी है।
लेकिन बोर्ड व विभाग उन्हें निश्चिंत होकर परीक्षा की तैयारी करने के लिए आश्वस्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि परीक्षाएं नयी घोषित तिथि के अनुसार ही शुरू होंगी। बोर्ड अधिकारी मानते हैं कि परीक्षाएं एक माह लेट चल रही है। पर यह भी जोड़ते हैं कि इसका नफा-नुकसान दोनों है। खैर, बोर्ड ने इन परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिये कमर कस ली है। बोर्ड अधिकारी शंकरलाल के मुताबिक 15 सितंबर के हिसाब से कर ली है तैयारी। मालूम हो कि मिडिल, दसवीं व बारहवीं के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाओं में 35 हजार 858 विद्यार्थी शामिल होंगे। परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिए जिला में 88 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं जबकि प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षा विभाग व हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड की कुल 18 उड़नदस्ता टीम परीक्षा केंद्रों पर नजर रखेंगी।
Oct 12, 06:26 pm
दरअसल, हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड के अधीन आयोजित होने वाली प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं दो बार स्थगित हो चुकी हैं। 15 सितंबर की निर्धारित तिथि को आगे बढ़ाकर 22 सितंबर किया गया और फिर अब 14 अक्टूबर से आरंभ होंगी ये परीक्षाएं। कभी बाढ़ तो कभी कुछ और बहाना बाधक बना तो ये परीक्षाएं लगभग एक माह से अधिक लेट हो गई। लाजिमी तौर पर विद्यार्थियों को अपनी तैयारियां कई बार टटोलनी पड़ी है। अब जबकि एकबार फिर नये सिरे परीक्षा की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा तो ऐसे में अनिश्चितता किशोर मन को आशंकित कर रही जो स्वाभाविक भी है।
लेकिन बोर्ड व विभाग उन्हें निश्चिंत होकर परीक्षा की तैयारी करने के लिए आश्वस्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि परीक्षाएं नयी घोषित तिथि के अनुसार ही शुरू होंगी। बोर्ड अधिकारी मानते हैं कि परीक्षाएं एक माह लेट चल रही है। पर यह भी जोड़ते हैं कि इसका नफा-नुकसान दोनों है। खैर, बोर्ड ने इन परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिये कमर कस ली है। बोर्ड अधिकारी शंकरलाल के मुताबिक 15 सितंबर के हिसाब से कर ली है तैयारी। मालूम हो कि मिडिल, दसवीं व बारहवीं के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाओं में 35 हजार 858 विद्यार्थी शामिल होंगे। परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिए जिला में 88 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं जबकि प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षा विभाग व हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड की कुल 18 उड़नदस्ता टीम परीक्षा केंद्रों पर नजर रखेंगी।
यूपीए-2 सत्ता में दोबारा काबिज़ होगी ऐसा बहुतों को मई 2009 में यकीन नहीं था. त्रिशंकु लोकसभा की तैयारी लगभग हर न्यूज चैनल ने की थी और मानसिक तौर पर हर कोई बस वोट मशीन से नतीजों का इंतजार कर रहा था कि त्रिशंकु जनादेश को किस तरह से दिखाया जा सकेगा. सकून था टीवी पत्रकारों के ज़ेहन में कि अगले दो या तीन दिनों तक खबरों की कमी नहीं होगी.
लेकिन लोकतंत्र में जनता का मन ना तो नेता भांप सकते हैं और ना ही पत्रकार. जनता जनार्दन की लाठी में, ठीक भगवान की लाठी की तरह, आवाज नहीं होती. जब पड़ती है, तब लगता है कि भई, पड़ गई, अब झेलो. क्या बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, वाम दल, हर किसी के मंसूबों पर पानी फिर गया. कांग्रेस की छवि आम आदमी को शायद अपनी लगी और कांग्रेस के नारे को लोगों ने शायद अपने दिल में खासी जगह भी दे दी. ‘आम आदमी के साथ कांग्रेस का हाथ’-एक ऐसा नारा जिसने इंदिरा गांधी के जमाने से देश की जनता को कांग्रेस से किनारा करने से थाम रखा है. नारा – हां तभी तो शायद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर मामूली कार्यकर्ता तक ने बड़ी आसानी ने इसे भुला भी दिया. पुरानी कहावत है – नेता वही सच्चा जिसका वादा हो कच्चा. यूपीए 2 के नेताओं ने कहावत की लाज रख ली.
वरना कोई भलामानुष जरा ये बताये कि सरकार कर क्या रही है – किसके लिए काम कर रही है. हमारे, आपके लिए या फिर बिचौलियों, बड़े व्यापारियों और कारोबारियों के लिए, सांसदों के लिए, घोटाले करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों के लिए, सट्टा बाजार में दूसरों के रुपये से खुद की जेब गरम करने वालों के लिए या फिर विदेशी कंपनियों के बड़े– बड़े अफसरों के लिए. अगर हमारे और आपके लिए सरकार होती तो क्या कमर तोड़ महंगाई पर लगाम कसने के लिए सरकार ने पिछले डेढ साल में दो-चार ठोस कदम नहीं उठाये होते? क्या सरकारी गोदामों में यूं ही लाखों टन अनाज – गेहूं, चावल, दाल, तिलहन – सड़ जाता और गरीब जनता भूखी बिलबिलाती? क्या 19 रुपये किलो चीनी डेढ़ साल में 50 रुपये और अब 34 रुपये किलो बिकती? अरहर की दाल 90 रुपये किलो और चने की दाल 60 रुपये किलो – क्या आप खरीदते? वो तो छोड़िए डेढ़ साल पहले किसने सोचा होगा कि हफ्ते भर की सब्ज़ी खरीदने के लिए 500 – 600 रुपये निकालने होगे.
आम आदमी के साथ सरकार का इतना बड़ा हाथ रहा है कि कमाई अठ्ठनी और खर्चा रुपया वाली हालत हो गयी है. हर मध्यवर्गीय परिवार में आज खर्चों पर काबू करने और कमाई की चादर बढ़ाने का जबरदस्त दबाव है. लेकिन सरकार है कि बस घडि़याली आंसू बहा रही है. पिछले एक साल में जब भी कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि बारिश ठीक नहीं हुई ...फसलों पर असर पड़ा है, ...गन्ने के खेत सूख रहे हैं, ...चीनी की कीमत बढ़ गई. दाल आयात करने का ऑर्डर सरकार ने तब दिया जब पूरी दुनिया में खबर फैल चुकी थी कि भारत में दलहन की किल्लत है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें आसमान पर चढ़ीं और जेब हल्की हुई जनता की. जब हर टीवी चैनल और अखबार में महंगाई की खबरें छाने लगीं तो कांग्रेस ने हल्के से सहयोगी दल एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार को झटका दिया, कहा गया, ...पवार साहब लाइन पर आ जाइये. पवार ने जरा आनाकानी की तो आईपीएल विवाद में उलझे पवार के करीबी और एनसीपी के नेताओं के खिलाफ जांच की बातें तेज हो गईं. पवार साहब ने फौरन पैंतरा बदला और चीनी के दामों की हवा जरा सी निकल गई.
लेकिन जनता की किसे परवाह ...सरकार फिर मदमस्त हाथी की तरह अपने काम में जुट गई. एक पवार साहब की लगाम कसने से अगर महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है, तो फिर क्या कहने. अनाज की फ्यूचर ट्रेडिंग पर अभी तक कोई रोक नहीं है. लिहाजा बिचौलिये धड़ल्ले से रुपया पीट रहे हैं. पीडीएस का हाल इतना खस्ता है कि गोदामों में अनाज सड़ जाये, बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे के लोग) तक अनाज पहुंचाने के सारे इंतजाम चरमरा चुके हैं. नतीजा, बड़े व्यापारियों की लाटरी लग गई है, क्योंकि गरीब आदमी ऊंची कीमतों पर अनाज बाजार से खरीद रहा है. किसान को फसल के लिए बढ़ी हुई दर देने का वादा सरकार ने किया तो जरुर लेकिन जितना इजाफा हुआ वो गया सरकारी बाबूओं की जेब में. वो इसलिए कि अगर किसान बाबुओं की जेब गरम नहीं करे तो गल्ले की कीमत, शायद अगले साल तक जाकर मिले उन्हें.
भ्रष्टाचार जिंदाबाद. बाकी कसर सरकार ने अपना घाटा पाटने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाकर पूरी कर दी. रोजमर्रा का यातायात तो महंगा हुआ ही, अनाज, सब्जियां, सबकुछ आसमान छूने लगीं. गैस की सब्सिडी कम की गई तो बजट और बिगड़ा. कर्ज महंगा कर सरकार ने दावा किया कि अर्थव्यवस्था से कुछ पैसे बाहर निकाले जायेगे – तो ईएमआई ने मध्य वर्ग के बजट और छितरा दिए. कुल मिलाकर, एक लाइन में कहे तो पिछले डेढ़ सालों में सरकार ने हर वो कदम उठाये जिससे महंगाई बढ़ती गई और जनता पिसती चली गई.
सोचने की बात तो ये है कि देश की बागडोर एक ऐसे आदमी के हाथों में है जिसने 90 के दशक में भारत को एक नई आर्थिक दिशा दी थी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह – जब 2004 में अपनी कुर्सी पर आसीन हुये थे तो उनकी पत्नी से मैंने पूछा था – एक ऐसा फैसला जो आप चाहती है कि बतौर आपके पति मनमोहन सिंह लें. जवाब था – गैस की कीमतों में इजाफा ना हो और महंगाई काबू में रहे. सिर्फ पांच सालों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री जी ने आपनी पत्नी की बातों को बिसरा दिया है. ना तो संसद में ना किसी रैली में, ना ही सरकार के किसी आदेश के जरिये मनमोहन सिंह ने ये जतलाने की कोशिश की है कि महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार कुछ कर रही है. या यूं कहे कि करती हुई भी दिखाई दे रही है. ऐसा लगता है कि जैसे सरकार को लकवा मार गया है और जो जिस गठरी से चुरा सकता है, वहीं सेंध लगाये बैठा है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार ही कुभकर्ण की नींद सोई है, विपक्षी दलों – बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, वाम दल, जेडीयू, आरजेडी – तमाम पार्टियां भी चैन की बंसी बजा रही हैं. नहीं तो सरकार के खिलाफ महंगाई पर मोर्चा निकालने के लिए बीजेपी क्या संसद के शुरु होने का इंतजार करती. जून के महीने में रैली में भाषण देते समय बीजेपी के अध्यक्ष का अचानक चक्कर खाकर गिरना शायद ही किसी को भूला होगा. बेचारे नितिन गडकरी -एसी में रहने की आदत जब लग जाये तो जून की गर्मी सर चढ़ कर बोलती है -बोले और गडकरीजी को चक्कर आ गया.
वाम दल तो बीजेपी से भी दो कदम आगे निकले. महंगाई के खिलाफ रैली की लेकिन कोलकाता में. भई अगले साल, पश्चिम बंगाल में चुनाव भी तो लड़ना है. ममता दीदी से लोहा भी तो लेना है. बाकी देश की जनता महंगाई से दो चार होती है तो हुआ करे. आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव ने तो क्या समां बांधा. महंगाई पर सरकार को घेरने के लिए महारैला का आयोजन किया – पहले तो कोई ये बताये की ये महारैला, क्या बला है भला. खैर, रैला में लोगों के मनोरंजन के लिए नाच का इंतजाम था और चिलचिलाती धूप से बचने के लिए लालूजी ने रैला को शाम पांच बजे के बाद संबोधित किया. और कहा क्या – महंगाई के लिए सिर्फ प्रदेश की सरकार ही जिम्मेदार है – नीतीश हटाओ, लालू को लाओ, महंगाई भगाओ. अब इसे क्या कहेंगे, कोरी वोटनीति या कुछ और?
संसद में महंगाई पर बहस हुई तो लगा कि सरकार की ओर से कोई ठोस बयान सामने आयेगा. बर्बाद होते अनाज की तस्वीरों को देखने के बाद मंत्रियों का सीना दर्द से भर आएगा. 48 करोड़ भूखी आबादी के लिए शायद सरकारी गोदामों का मुंह खोल दिया जायेगा. लेकिन एलान की बात तो दूर, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो संसद में अपनी बात भी नहीं रखी. वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को आगे कर सरकार ने संसद में महंगाई पर चर्चा के अपने दायित्व का निर्वाह किया. देश की जनता आश्वासन की टकटकी लगाये बैठी रही. लाख टके की एक बात, ना तो सरकार, ना ही विपक्ष, ना ही अधिकारी, ...आम जनता की फिक्र किसी को नहीं. फिक्र है तो सिर्फ इस बात की, आपना घर भरे, दूसरे भले मरें. ...तो ये कैसी है सरकार, किसकी है सरकार?
लेकिन लोकतंत्र में जनता का मन ना तो नेता भांप सकते हैं और ना ही पत्रकार. जनता जनार्दन की लाठी में, ठीक भगवान की लाठी की तरह, आवाज नहीं होती. जब पड़ती है, तब लगता है कि भई, पड़ गई, अब झेलो. क्या बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, वाम दल, हर किसी के मंसूबों पर पानी फिर गया. कांग्रेस की छवि आम आदमी को शायद अपनी लगी और कांग्रेस के नारे को लोगों ने शायद अपने दिल में खासी जगह भी दे दी. ‘आम आदमी के साथ कांग्रेस का हाथ’-एक ऐसा नारा जिसने इंदिरा गांधी के जमाने से देश की जनता को कांग्रेस से किनारा करने से थाम रखा है. नारा – हां तभी तो शायद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर मामूली कार्यकर्ता तक ने बड़ी आसानी ने इसे भुला भी दिया. पुरानी कहावत है – नेता वही सच्चा जिसका वादा हो कच्चा. यूपीए 2 के नेताओं ने कहावत की लाज रख ली.
वरना कोई भलामानुष जरा ये बताये कि सरकार कर क्या रही है – किसके लिए काम कर रही है. हमारे, आपके लिए या फिर बिचौलियों, बड़े व्यापारियों और कारोबारियों के लिए, सांसदों के लिए, घोटाले करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों के लिए, सट्टा बाजार में दूसरों के रुपये से खुद की जेब गरम करने वालों के लिए या फिर विदेशी कंपनियों के बड़े– बड़े अफसरों के लिए. अगर हमारे और आपके लिए सरकार होती तो क्या कमर तोड़ महंगाई पर लगाम कसने के लिए सरकार ने पिछले डेढ साल में दो-चार ठोस कदम नहीं उठाये होते? क्या सरकारी गोदामों में यूं ही लाखों टन अनाज – गेहूं, चावल, दाल, तिलहन – सड़ जाता और गरीब जनता भूखी बिलबिलाती? क्या 19 रुपये किलो चीनी डेढ़ साल में 50 रुपये और अब 34 रुपये किलो बिकती? अरहर की दाल 90 रुपये किलो और चने की दाल 60 रुपये किलो – क्या आप खरीदते? वो तो छोड़िए डेढ़ साल पहले किसने सोचा होगा कि हफ्ते भर की सब्ज़ी खरीदने के लिए 500 – 600 रुपये निकालने होगे.
आम आदमी के साथ सरकार का इतना बड़ा हाथ रहा है कि कमाई अठ्ठनी और खर्चा रुपया वाली हालत हो गयी है. हर मध्यवर्गीय परिवार में आज खर्चों पर काबू करने और कमाई की चादर बढ़ाने का जबरदस्त दबाव है. लेकिन सरकार है कि बस घडि़याली आंसू बहा रही है. पिछले एक साल में जब भी कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि बारिश ठीक नहीं हुई ...फसलों पर असर पड़ा है, ...गन्ने के खेत सूख रहे हैं, ...चीनी की कीमत बढ़ गई. दाल आयात करने का ऑर्डर सरकार ने तब दिया जब पूरी दुनिया में खबर फैल चुकी थी कि भारत में दलहन की किल्लत है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें आसमान पर चढ़ीं और जेब हल्की हुई जनता की. जब हर टीवी चैनल और अखबार में महंगाई की खबरें छाने लगीं तो कांग्रेस ने हल्के से सहयोगी दल एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार को झटका दिया, कहा गया, ...पवार साहब लाइन पर आ जाइये. पवार ने जरा आनाकानी की तो आईपीएल विवाद में उलझे पवार के करीबी और एनसीपी के नेताओं के खिलाफ जांच की बातें तेज हो गईं. पवार साहब ने फौरन पैंतरा बदला और चीनी के दामों की हवा जरा सी निकल गई.
लेकिन जनता की किसे परवाह ...सरकार फिर मदमस्त हाथी की तरह अपने काम में जुट गई. एक पवार साहब की लगाम कसने से अगर महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है, तो फिर क्या कहने. अनाज की फ्यूचर ट्रेडिंग पर अभी तक कोई रोक नहीं है. लिहाजा बिचौलिये धड़ल्ले से रुपया पीट रहे हैं. पीडीएस का हाल इतना खस्ता है कि गोदामों में अनाज सड़ जाये, बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे के लोग) तक अनाज पहुंचाने के सारे इंतजाम चरमरा चुके हैं. नतीजा, बड़े व्यापारियों की लाटरी लग गई है, क्योंकि गरीब आदमी ऊंची कीमतों पर अनाज बाजार से खरीद रहा है. किसान को फसल के लिए बढ़ी हुई दर देने का वादा सरकार ने किया तो जरुर लेकिन जितना इजाफा हुआ वो गया सरकारी बाबूओं की जेब में. वो इसलिए कि अगर किसान बाबुओं की जेब गरम नहीं करे तो गल्ले की कीमत, शायद अगले साल तक जाकर मिले उन्हें.
भ्रष्टाचार जिंदाबाद. बाकी कसर सरकार ने अपना घाटा पाटने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाकर पूरी कर दी. रोजमर्रा का यातायात तो महंगा हुआ ही, अनाज, सब्जियां, सबकुछ आसमान छूने लगीं. गैस की सब्सिडी कम की गई तो बजट और बिगड़ा. कर्ज महंगा कर सरकार ने दावा किया कि अर्थव्यवस्था से कुछ पैसे बाहर निकाले जायेगे – तो ईएमआई ने मध्य वर्ग के बजट और छितरा दिए. कुल मिलाकर, एक लाइन में कहे तो पिछले डेढ़ सालों में सरकार ने हर वो कदम उठाये जिससे महंगाई बढ़ती गई और जनता पिसती चली गई.
सोचने की बात तो ये है कि देश की बागडोर एक ऐसे आदमी के हाथों में है जिसने 90 के दशक में भारत को एक नई आर्थिक दिशा दी थी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह – जब 2004 में अपनी कुर्सी पर आसीन हुये थे तो उनकी पत्नी से मैंने पूछा था – एक ऐसा फैसला जो आप चाहती है कि बतौर आपके पति मनमोहन सिंह लें. जवाब था – गैस की कीमतों में इजाफा ना हो और महंगाई काबू में रहे. सिर्फ पांच सालों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री जी ने आपनी पत्नी की बातों को बिसरा दिया है. ना तो संसद में ना किसी रैली में, ना ही सरकार के किसी आदेश के जरिये मनमोहन सिंह ने ये जतलाने की कोशिश की है कि महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार कुछ कर रही है. या यूं कहे कि करती हुई भी दिखाई दे रही है. ऐसा लगता है कि जैसे सरकार को लकवा मार गया है और जो जिस गठरी से चुरा सकता है, वहीं सेंध लगाये बैठा है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार ही कुभकर्ण की नींद सोई है, विपक्षी दलों – बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, वाम दल, जेडीयू, आरजेडी – तमाम पार्टियां भी चैन की बंसी बजा रही हैं. नहीं तो सरकार के खिलाफ महंगाई पर मोर्चा निकालने के लिए बीजेपी क्या संसद के शुरु होने का इंतजार करती. जून के महीने में रैली में भाषण देते समय बीजेपी के अध्यक्ष का अचानक चक्कर खाकर गिरना शायद ही किसी को भूला होगा. बेचारे नितिन गडकरी -एसी में रहने की आदत जब लग जाये तो जून की गर्मी सर चढ़ कर बोलती है -बोले और गडकरीजी को चक्कर आ गया.
वाम दल तो बीजेपी से भी दो कदम आगे निकले. महंगाई के खिलाफ रैली की लेकिन कोलकाता में. भई अगले साल, पश्चिम बंगाल में चुनाव भी तो लड़ना है. ममता दीदी से लोहा भी तो लेना है. बाकी देश की जनता महंगाई से दो चार होती है तो हुआ करे. आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव ने तो क्या समां बांधा. महंगाई पर सरकार को घेरने के लिए महारैला का आयोजन किया – पहले तो कोई ये बताये की ये महारैला, क्या बला है भला. खैर, रैला में लोगों के मनोरंजन के लिए नाच का इंतजाम था और चिलचिलाती धूप से बचने के लिए लालूजी ने रैला को शाम पांच बजे के बाद संबोधित किया. और कहा क्या – महंगाई के लिए सिर्फ प्रदेश की सरकार ही जिम्मेदार है – नीतीश हटाओ, लालू को लाओ, महंगाई भगाओ. अब इसे क्या कहेंगे, कोरी वोटनीति या कुछ और?
संसद में महंगाई पर बहस हुई तो लगा कि सरकार की ओर से कोई ठोस बयान सामने आयेगा. बर्बाद होते अनाज की तस्वीरों को देखने के बाद मंत्रियों का सीना दर्द से भर आएगा. 48 करोड़ भूखी आबादी के लिए शायद सरकारी गोदामों का मुंह खोल दिया जायेगा. लेकिन एलान की बात तो दूर, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो संसद में अपनी बात भी नहीं रखी. वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को आगे कर सरकार ने संसद में महंगाई पर चर्चा के अपने दायित्व का निर्वाह किया. देश की जनता आश्वासन की टकटकी लगाये बैठी रही. लाख टके की एक बात, ना तो सरकार, ना ही विपक्ष, ना ही अधिकारी, ...आम जनता की फिक्र किसी को नहीं. फिक्र है तो सिर्फ इस बात की, आपना घर भरे, दूसरे भले मरें. ...तो ये कैसी है सरकार, किसकी है सरकार?
Monday, October 11, 2010
Todays thought
''I slept and dreamt that life was joy .
I awoke and saw that life was service.
I acted and beheld, service was joy.''
''Rabindernath Tagore''
I awoke and saw that life was service.
I acted and beheld, service was joy.''
''Rabindernath Tagore''
अक्सर जब हम देशप्रेम या साहित्य सेवा की बात करते है तो अंग्रेजी में बोलते है और सोचते है की बहुत अच्छा और बड़ा काम कर रहे है |हमारे बुद्धिजीवी कहते है की हिंदी भाषा विचारों को अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं और इसीलिए इसका व्यापक उपयोग नहीं हो सकता|इस बात से उनकी हीन भावना और अशिक्षा ही झलकती हैं|किसी भी भाषा का कितना अच्छा और व्यापक प्रोयोग हो सकता है |यह उस भासा पर नहीं,उस भासा के जानने वाले पर निर्भर करता है |अगर हम अपनी राष्ट्रियाभाषा को पढ़ ,लिख,समझ कर उसका व्यापक प्रोयोग नहीं कर सकते तो यह भाषा का नहीं हमारा दोष हैं |
विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओँ में हिंदी तीसरे स्थान पर हैं |फिर भी सहितियक और शैक्षिक महत्त्व में इसका स्थान फ्रेंच ,जर्मनी और जापानी भाषाओं से से बहुत निचे हैं |जिसके बोलने वाले हिंदी की तुलना में बहुत कम हैं |हिंदी भारत ,नेपाल ,इंडोनेशिया ,मलैय्शिया ,सूरीनाम,फिजी,गोयाना,मोरिसिऔस जैसे अनेक देशो में बोली जाती हैं ,फिर भी विडम्बना यह है की आज तक इसे अन्तेर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया हैं |इसका पर्मुख कारण भारतीयों में संकल्प की कमी हैं |अगर हम अपनी भाषा को अपने ही घर में ही नहीं बोल सकते तो इसे विश्व भाषा का दर्जा क्या दिलवाएंगे
विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओँ में हिंदी तीसरे स्थान पर हैं |फिर भी सहितियक और शैक्षिक महत्त्व में इसका स्थान फ्रेंच ,जर्मनी और जापानी भाषाओं से से बहुत निचे हैं |जिसके बोलने वाले हिंदी की तुलना में बहुत कम हैं |हिंदी भारत ,नेपाल ,इंडोनेशिया ,मलैय्शिया ,सूरीनाम,फिजी,गोयाना,मोरिसिऔस जैसे अनेक देशो में बोली जाती हैं ,फिर भी विडम्बना यह है की आज तक इसे अन्तेर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया हैं |इसका पर्मुख कारण भारतीयों में संकल्प की कमी हैं |अगर हम अपनी भाषा को अपने ही घर में ही नहीं बोल सकते तो इसे विश्व भाषा का दर्जा क्या दिलवाएंगे
Wednesday, October 6, 2010
भूमि अधिग्रहण करने की बजाये लीज़ पर लेना चाहिए :बराला
किसानो की भूमि का अधिग्रहण करने की बजाये उसे 99 साल के लिए लीज़ पर मालिकाना हक़ बना रहेगा वहीँ जिस उदेश्य को लेकर अधिग्रहण किया गया हो वह भी पूरा हो जायेगा |यह बात भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष शुभाष बराला ने चंडीगढ़ रोड पर स्तिथ एक निजी होटल में एक प्रेस वार्ता में पत्रकारों को कही |बराला ने कहा की भाजपा किसान मोर्चा केंद्र सरकार की इस अधिग्रहण निति के विरोध में 11 ओक्टूबर को जिला स्टार पर पर विरोध प्रदर्शन करेगी और जिला ऊपौकत महोदय के माधाम से राष्ट्रियापति के नाम ज्ञापन सोंपेगी |उन्होने टोहाना में भूमि अधिग्रहण पर बोलते हुए कहा की अगर कृषि मंत्री परमवीर सिंह वास्तव में टोहाना की उनत्ती चाहते है वे लघुसचिवालय डंगर रोड पर अपनी भूमि पर बनवाये | भाजपा नेता ने सरकार को आडे हाथो लेते हुए कहा की अधिग्रहण के बदले किसानो को मुआवजा दिया जा रहा है वह बिलकुल ही गलत है |किसानो को कम से कम 25 हज़ार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलाना चाहिए |उन्होंने कहा की भाजपा भूमि अधिग्रहण मामले में किसानो के साथ खड़ी है और वह किसी भी सूरत में किसानो के सामने खड़ी है और वह किसी भी सूरत में किसानो के साथ अन्याय नहीं होने देगी |
Tuesday, October 5, 2010
मंदिर और मस्जिद का दर्द
कहने को तो विद्यालयों में यही पढाया जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई आपस में सब भाई-भाई लेकिन वास्तव में तस्वीर कुछ और ही है. इसका जीता जागता उदाहरण है हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच कई वर्षो तक चला रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद. कुल 6 दशकों तक विवादित जमीन के लिए मंदिर-मस्जिद में चले मुक्काद्मे का आखिरकार फैसला हो ही गया. ये लड़ाई न तो हिन्दू भाइयों की थी न मुस्लिम भाइयों की और न ही हिन्दू-मुस्लिम लोगों की. ये लड़ाई थी मंदिर-मस्जिद के बीच में विवादित जमीन की. इस लड़ाई से जुडा दूसरा पहलु ये भी था कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है या नहीं. और आखिरकार कानून ने ये फैसला सुना ही दिया कि अयोध्या भगवान राम की ही जन्मभूमि है. सोचने वाली बात तो यह है कि अगर भगवान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने में 60 वर्ष लग गए तो इन्सान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने के लिए तो अगला जन्म ही लेना पड़ेगा. सभी जानते हैं कि प्राचीनकाल से ही हमारे ग्रंथों में यह बात विद्यमान है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है तो आज उस बात का प्रमाण ढूँढने की जरुरत क्यूँ. उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के केंद्र में स्थित अयोध्या शहर , रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे वाली विवादित जमीन के मालिकाना हक़ को लेकर पिछले 60 वर्षों से सुर्ख़ियों में रहा है.
अयोध्या की पवित्र धरा पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का मुख्य कारण पुरातन ग्रंथों में पढने को मिल जाता है. कहा जाता है कि जब मुग़ल आक्रमणकारी बाबर काबुल से भारत आया तो उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हराया व उसके बाद चितौडगढ़ के राजपूतों व राणा संग्राम सिंह की घुड़सवार सेना पर फतह हासिल कर उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकार में ले लिया. जब बाबर को अयोध्या में स्थित राम मंदिर का ज्ञान हुआ तो उन्होंने श्रद्धा भाव से मंदिर में जाने का निर्णय लिया किन्तु कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं को यह बात रास नहीं आई कि एक आक्रमणकारी मुस्लिम उनके मंदिर में आया. हिन्दुओं ने इसे अपने मंदिर का अपमान समझकर इसे अपवित्रता का प्रतीक समझा. उन कट्टरपंथी हिन्दुओं ने राम मंदिर को पवित्र करने के लिए 125 मण यानि 6000 किलोग्राम कच्ची लस्सी से धोया. यह बात जब मुग़ल प्रशासक बाबर तक पहुंची तो इस बात से उसकी श्रद्धा भावना आहत हुई और बाबर ने अपने सैनिकों को मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया. उस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा किये जाने के कारण मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया. इस मस्जिद का निर्माण 1528 में किया गया था.
उसके बाद ही अयोध्या में इस जगह पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया क्योंकि कुछ हिन्दुओं का कहना था कि इस जमीन पर पर भगवान राम का जन्म हुआ था और और उनका दावा था कि ये यह जगह केवल हिन्दुओं की है. कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना था कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं तो उस मस्जिद का निर्माण उसके द्वारा कैसे किया गया. 1853 में मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्थान के पास हिन्दू-मुस्लिम लोगों में दंगे हुए. वर्ष 1859 में ब्रिटिश सरकारने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी. सन 1885 में अयोध्या का मामला सबसे पहले अदालत में आया. महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज के सामने वाद संख्या 61 /280 ,1885 दायर किया. महंत ने अदालत से बाबरी ढांचे के पास राम चबूतरे के पास मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी.
मुक्कद्मेबाजी का दूसरा चरण 23 दिसम्बर 1949 को शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियाँ कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने यह मूर्तियाँ मस्जिद में रखवाई थी. मुसलामानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला अदालत में गया. इसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया. फिर 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कि सामान्य अदालत में वाद संख्या 2 ,1950 दायर कर भगवान राम कि मूर्ती को न हटाने की मांग के साथ पूजा का अनन्य अधिकार भी माँगा. सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया,जिसका नेतृत्त्व बाद में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने किया. उसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसम्बर , 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच दंगे भड़क गए. दो हज़ार से भी अधिक लोगों की इसमें जान चली गयी. जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो उसी के साथ हज़ारों साल पुरानी हिन्दू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ही ढहा दी गयी. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आन्दोलन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस सरकार भी थी क्योंकि उस समय केंद्र की सत्ता में कांग्रेस सरकार थी और उसने बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कोई ख़ास प्रयास नहीं किये. वर्ष 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया, जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया. इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच के तनाव ने फिर से तूल पकड़ लिया. 13 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिला पूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार ने भी अदालत के फैसले का पालन करने को कहा था. लगातार 60 वर्षों से चल रही अदालती कार्यवाही के बाद गिरते पड़ते आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर,2010 को अयोध्या विवाद पर दिए फैसले में विवादास्पद जमीन के तीन बराबर हिस्से कर वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा को देने का फैसला सुना ही दिया.
अदालत ने फैसला तो सुना दिया लेकिन इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों में भाईचारे की भावना कम हो गयी है. इस फैसले से न तो कोई जीता और न ही कोई हारा. मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई ने लोगों के दिलों में दूरियों को बढावा दिया है. हम तो सिर्फ यही प्रार्थना और दुआ करते हैं कि-
" संस्कार संस्कृति शान मिले
ऐसे हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दुस्तान मिले,
रहे हम मिल जुल के ऐसे कि
मंदिर में मिले अल्लाह और मस्जिद में राम मिले"
अयोध्या की पवित्र धरा पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का मुख्य कारण पुरातन ग्रंथों में पढने को मिल जाता है. कहा जाता है कि जब मुग़ल आक्रमणकारी बाबर काबुल से भारत आया तो उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हराया व उसके बाद चितौडगढ़ के राजपूतों व राणा संग्राम सिंह की घुड़सवार सेना पर फतह हासिल कर उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकार में ले लिया. जब बाबर को अयोध्या में स्थित राम मंदिर का ज्ञान हुआ तो उन्होंने श्रद्धा भाव से मंदिर में जाने का निर्णय लिया किन्तु कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं को यह बात रास नहीं आई कि एक आक्रमणकारी मुस्लिम उनके मंदिर में आया. हिन्दुओं ने इसे अपने मंदिर का अपमान समझकर इसे अपवित्रता का प्रतीक समझा. उन कट्टरपंथी हिन्दुओं ने राम मंदिर को पवित्र करने के लिए 125 मण यानि 6000 किलोग्राम कच्ची लस्सी से धोया. यह बात जब मुग़ल प्रशासक बाबर तक पहुंची तो इस बात से उसकी श्रद्धा भावना आहत हुई और बाबर ने अपने सैनिकों को मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया. उस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा किये जाने के कारण मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया. इस मस्जिद का निर्माण 1528 में किया गया था.
उसके बाद ही अयोध्या में इस जगह पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया क्योंकि कुछ हिन्दुओं का कहना था कि इस जमीन पर पर भगवान राम का जन्म हुआ था और और उनका दावा था कि ये यह जगह केवल हिन्दुओं की है. कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना था कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं तो उस मस्जिद का निर्माण उसके द्वारा कैसे किया गया. 1853 में मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्थान के पास हिन्दू-मुस्लिम लोगों में दंगे हुए. वर्ष 1859 में ब्रिटिश सरकारने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी. सन 1885 में अयोध्या का मामला सबसे पहले अदालत में आया. महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज के सामने वाद संख्या 61 /280 ,1885 दायर किया. महंत ने अदालत से बाबरी ढांचे के पास राम चबूतरे के पास मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी.
मुक्कद्मेबाजी का दूसरा चरण 23 दिसम्बर 1949 को शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियाँ कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने यह मूर्तियाँ मस्जिद में रखवाई थी. मुसलामानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला अदालत में गया. इसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया. फिर 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कि सामान्य अदालत में वाद संख्या 2 ,1950 दायर कर भगवान राम कि मूर्ती को न हटाने की मांग के साथ पूजा का अनन्य अधिकार भी माँगा. सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया,जिसका नेतृत्त्व बाद में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने किया. उसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसम्बर , 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच दंगे भड़क गए. दो हज़ार से भी अधिक लोगों की इसमें जान चली गयी. जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो उसी के साथ हज़ारों साल पुरानी हिन्दू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ही ढहा दी गयी. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आन्दोलन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस सरकार भी थी क्योंकि उस समय केंद्र की सत्ता में कांग्रेस सरकार थी और उसने बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कोई ख़ास प्रयास नहीं किये. वर्ष 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया, जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया. इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच के तनाव ने फिर से तूल पकड़ लिया. 13 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिला पूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार ने भी अदालत के फैसले का पालन करने को कहा था. लगातार 60 वर्षों से चल रही अदालती कार्यवाही के बाद गिरते पड़ते आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर,2010 को अयोध्या विवाद पर दिए फैसले में विवादास्पद जमीन के तीन बराबर हिस्से कर वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा को देने का फैसला सुना ही दिया.
अदालत ने फैसला तो सुना दिया लेकिन इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों में भाईचारे की भावना कम हो गयी है. इस फैसले से न तो कोई जीता और न ही कोई हारा. मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई ने लोगों के दिलों में दूरियों को बढावा दिया है. हम तो सिर्फ यही प्रार्थना और दुआ करते हैं कि-
" संस्कार संस्कृति शान मिले
ऐसे हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दुस्तान मिले,
रहे हम मिल जुल के ऐसे कि
मंदिर में मिले अल्लाह और मस्जिद में राम मिले"
Monday, October 4, 2010
अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फेसला
अयोध्या के 60 वर्षो से चल रहे मामले का फेसला आ गया है |पूरी दुनिया सांसे थामे इस फेसले का इन्तजार कर रही थी,करे भी क्यों नहीं क्योंकि फेसला राम मंदिर और बावरी मस्जिद का जो था |यह ऐतिहासिक फेसला 6 दशक से चल रहा था |यह मामला फेजाबाद के कोर्ट 22 दिसंबर 1950 को गोपाल सिंह ने करवाया था ,उसके बाद परमहंस ने तथा निर्मोही अखाड़े ने मुकदमा दर्ज करवाया |29 सितम्बर को इस मामले पर इलहाबाद की लखनऊ हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फेसला सुना दिया |तीनो जज जस्टिस सुधीर अग्रवाल , जस्टिस एस यु खान , जस्टिस धर्मवीर अग्रवाल ने यह फेसला किया की पूरी विवादित जमीन तीन हिस्सों में बंटेगी |जमीन आबंटन का कार्य तीन महीनो बाद शुरू होगा |हिन्दुओ के हक़ में यह कहा गया की रामलला की जमीन जहाँ है वहीँ रहेगी |श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य दास ने कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया |लेकिन सुन्नी सेन्ट्रल वख्फ़ बोर्ड के खिलाफ मकदमा सुप्रीम कोर्ट में दर्ज करेगा |
क्या बनाने आये थे और क्या बना बैठे ,
कहीं मंदिर और कही मस्जिद बना बैठे ,
हमसे तो अच्छी जात उन परिंदों की जो कभी
\ मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर जा बैठे
क्या बनाने आये थे और क्या बना बैठे ,
कहीं मंदिर और कही मस्जिद बना बैठे ,
हमसे तो अच्छी जात उन परिंदों की जो कभी
\ मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर जा बैठे
Thursday, September 30, 2010
Today Thought
Two great days in human life:
"The day we were born & 2nd day we prove why we were born"
So, believe urself & prove urself.
"The day we were born & 2nd day we prove why we were born"
So, believe urself & prove urself.
Monday, September 6, 2010
जन्माष्टमी का महत्व
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्री कृष्ण का जनम हुआ। इस दिन को रोहिणी नक्षत्र का दिन भी कहते हैं। इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झांकियां सजाई जाती हैं।भगवान कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता है। पुरुष और औरतें रात्रि १२ बजे तक व्रत रखतें हैं। रात को १२ बजे शंख और घंटों की आवाज से श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है।
कथा :- द्वापर युग में जब पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढने लगा तो पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपने उद्दार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु जी के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवन विष्णु अन्नत शैया पर सो रहे थे। स्तुति करने पर भगवान् की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा और सब देवताओं से जब आने का कारण पूछा तो पृथ्वी ने उनसे यह आग्रह किया कि वे उसे पाप के बोझ से बचाएँ। यह सुनकर विष्णु जी बोले- मैं बज्र मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। आप सब देवतागण बज्र में जाकर यादव वंश की रचना करो। इतना कहकर भगवन अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद सभी देवताओं ने यादव वंश की रचना की। द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करता था। उसके पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर खुद राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई हे कंस! जिस देवकी को बड़े प्यार से विदा करने जा रहा है उसका आठवां पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोधित हो गया और देवकी को मारने के लिए तेयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका पुत्र। तब वासुदेव जी ने कंस को समझाया की तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान मैं तुम्हें सौंप दूंगा। वासुदेव कभी झूठ नहीं बोलते थे तो कंस ने वासुदेव की बात स्वीकार कर ली। वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया गया। उसी समय नारद जी वहां पहुंचे और कंस से कहा की ये कैसे पता चलेगा की आठवां गर्भ कौन सा है। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम से। कंस ने नारद के परामर्श पर देवकी के गर्भ से पैदा होने वाले सभी बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार कंस ने देवकी के ७ बालकों की हत्या कर दी।
भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख,चक्र,गदा और पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा कि-अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे गोकुल के नन्द के यहाँ पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेव की हथकड़ियाँ खुल गयीं,दरवाजे अपने आप खुल गए,पहरेदार सो गए। वासुदेव श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल की और चल दिए। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढने लगी। भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण स्पर्श के बाद यमुना घट गई। वासुदेव यमुना पार करके गोकुल के नन्द के यहाँ गए। बालक कृष्ण को यशोदा की पास सुलाकर कन्या को लेकर वापिस कंस की कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे बंद हो गए, वासुदेव के हाथों में फिर से हथकड़ियाँ लग गयी। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गयी। कंस ने कारागार में जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली, हे कंस! तुझे मारने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस व्याकुल हो गया और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी आलौकिक माया से सभी का संघार कर दिया। बड़े होकर श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर पुन: उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया।
श्रीकृष्ण की पुण्य तिथि को तभी से सारे देश में हर्षौल्लास से मनाया जाता है। भादव श्रीकृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। इस दिन की रत को यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्ण जयंती होती है। रोहिणी नक्षत्र के आभाव में केवल जन्माष्टमी व्रत का ही योग होता है। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष नदी में तिल मिलाकर नहाते हैं। पंचामृत से भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। उन्हें सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सजाकर सुन्दर झूले में विराजमान किया जाता है। धूप-दीप पुष्पादि से पूजन करते हैं। आरती उतारते हैं और माखन-मिश्री आदि का भोग लगाते हैं। हरी का गुणगान करते हैं। १२ बजे रात को खीरा चीरकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म करते हैं। इस दिन गौ दान का विशेष महत्त्व होता है। इस अकेले व्रत से करोड़ों एकादशी व्रतों का पुण्यफल प्राप्त होता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद त्यौहार है। यह अगस्त या सितम्बर के महीने में आता है। इस दिन भक्त लोग भजन गाते हैं। दिन भर तरह-तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं तथा रात को कृष्ण प्रकट के बाद उन्हें भोग लगाते हैं और फिर इन व्यंजनों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह त्यौहार भारत में ही नहीं विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से जगमगा उठती है। कान्हा की रासलीलाओं को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से मथुरा पहुँचते हैं। मंदिरों को ख़ास तौर पर सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झूलाया जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।
विधि:- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन धर्म के लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है वो निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति का दूध,दही,शहद,यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। उसके उपरांत विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात्रि को १२ बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरुप खीरा चीरते हैं।
जागरण:-धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन जागरण का विधान भी बताया गया है। इस रात्री को भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मन्त्र "नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप भी करते हैं। श्रीकृष्ण का जाप करते हुए सारी रात जागने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती,कपूर आदि से आरती करते हैं। इस दिन वैसे तो पूरा दिन व्रत रखते हैं लेकिन असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।
पुराणों में यह कहा जाता है कि जिस राष्ट्र या राज्य में यह व्रतोत्सव किया जाता है वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का तांडव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। सभी को सुख-समृधि प्राप्त होती है। व्रतकर्ता भगवान की कृपा पाकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अंत में वैकुंठ जाता है। व्रत करने वालों के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।
जय श्री कृष्ण ।
कथा :- द्वापर युग में जब पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढने लगा तो पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपने उद्दार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु जी के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवन विष्णु अन्नत शैया पर सो रहे थे। स्तुति करने पर भगवान् की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा और सब देवताओं से जब आने का कारण पूछा तो पृथ्वी ने उनसे यह आग्रह किया कि वे उसे पाप के बोझ से बचाएँ। यह सुनकर विष्णु जी बोले- मैं बज्र मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। आप सब देवतागण बज्र में जाकर यादव वंश की रचना करो। इतना कहकर भगवन अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद सभी देवताओं ने यादव वंश की रचना की। द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करता था। उसके पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर खुद राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई हे कंस! जिस देवकी को बड़े प्यार से विदा करने जा रहा है उसका आठवां पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोधित हो गया और देवकी को मारने के लिए तेयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका पुत्र। तब वासुदेव जी ने कंस को समझाया की तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान मैं तुम्हें सौंप दूंगा। वासुदेव कभी झूठ नहीं बोलते थे तो कंस ने वासुदेव की बात स्वीकार कर ली। वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया गया। उसी समय नारद जी वहां पहुंचे और कंस से कहा की ये कैसे पता चलेगा की आठवां गर्भ कौन सा है। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम से। कंस ने नारद के परामर्श पर देवकी के गर्भ से पैदा होने वाले सभी बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार कंस ने देवकी के ७ बालकों की हत्या कर दी।
भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख,चक्र,गदा और पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा कि-अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे गोकुल के नन्द के यहाँ पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेव की हथकड़ियाँ खुल गयीं,दरवाजे अपने आप खुल गए,पहरेदार सो गए। वासुदेव श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल की और चल दिए। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढने लगी। भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण स्पर्श के बाद यमुना घट गई। वासुदेव यमुना पार करके गोकुल के नन्द के यहाँ गए। बालक कृष्ण को यशोदा की पास सुलाकर कन्या को लेकर वापिस कंस की कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे बंद हो गए, वासुदेव के हाथों में फिर से हथकड़ियाँ लग गयी। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गयी। कंस ने कारागार में जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली, हे कंस! तुझे मारने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस व्याकुल हो गया और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी आलौकिक माया से सभी का संघार कर दिया। बड़े होकर श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर पुन: उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया।
श्रीकृष्ण की पुण्य तिथि को तभी से सारे देश में हर्षौल्लास से मनाया जाता है। भादव श्रीकृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। इस दिन की रत को यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्ण जयंती होती है। रोहिणी नक्षत्र के आभाव में केवल जन्माष्टमी व्रत का ही योग होता है। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष नदी में तिल मिलाकर नहाते हैं। पंचामृत से भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। उन्हें सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सजाकर सुन्दर झूले में विराजमान किया जाता है। धूप-दीप पुष्पादि से पूजन करते हैं। आरती उतारते हैं और माखन-मिश्री आदि का भोग लगाते हैं। हरी का गुणगान करते हैं। १२ बजे रात को खीरा चीरकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म करते हैं। इस दिन गौ दान का विशेष महत्त्व होता है। इस अकेले व्रत से करोड़ों एकादशी व्रतों का पुण्यफल प्राप्त होता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद त्यौहार है। यह अगस्त या सितम्बर के महीने में आता है। इस दिन भक्त लोग भजन गाते हैं। दिन भर तरह-तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं तथा रात को कृष्ण प्रकट के बाद उन्हें भोग लगाते हैं और फिर इन व्यंजनों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह त्यौहार भारत में ही नहीं विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से जगमगा उठती है। कान्हा की रासलीलाओं को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से मथुरा पहुँचते हैं। मंदिरों को ख़ास तौर पर सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झूलाया जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।
विधि:- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन धर्म के लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है वो निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति का दूध,दही,शहद,यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। उसके उपरांत विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात्रि को १२ बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरुप खीरा चीरते हैं।
जागरण:-धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन जागरण का विधान भी बताया गया है। इस रात्री को भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मन्त्र "नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप भी करते हैं। श्रीकृष्ण का जाप करते हुए सारी रात जागने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती,कपूर आदि से आरती करते हैं। इस दिन वैसे तो पूरा दिन व्रत रखते हैं लेकिन असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।
पुराणों में यह कहा जाता है कि जिस राष्ट्र या राज्य में यह व्रतोत्सव किया जाता है वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का तांडव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। सभी को सुख-समृधि प्राप्त होती है। व्रतकर्ता भगवान की कृपा पाकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अंत में वैकुंठ जाता है। व्रत करने वालों के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।
जय श्री कृष्ण ।
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