इससे पहले
प्रोड्यूसर:कुमार मंगत
डायरेक्टर:प्रियदर्शन
कलाकार:अजय देवगन,अक्षय खन्ना,बिपाशा बासु,परेश रावल,रीमा सेन
रेटिंग:2
ऑनर किलिंग जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाना कोई आसान काम नहीं है और जब प्रियदर्शन जैसे मंझे हुए निर्देशक ऐसे मुद्दे पर फिल्म बनाएं तो उम्मीद लगाना लाजिमी है|ऐसे में यह सवाल उठाना कि क्या यह फिल्म समाज में फैली इस कुरीति को दर्शाने में सफल हो पाई है? जवाब है नहीं प्रियदर्शन की पिछली दो फिल्मों(खट्टा मीठा और दे दना दन)की तरह आक्रोश भी एक कमज़ोर फिल्म ही साबित हुई है|
अच्छा विषय होने के बावजूद भी यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होने में नाकामयाब नज़र आती है| कमज़ोर स्क्रीनप्ले और उबाऊ निर्देशन इस फिल्म को बेदम बना देते हैं|फिल्म की शुरुआत में दिल्ली और झांझर के चार मेडिकल स्टुडेंट्स को अगवा कर लिया जाता है|दिल्ली यूनिवर्सिटी के इन मेडिकल छात्रों को बिहार के झांझर से अगवा कर लिया जाता है|इन लड़कों को खोजने के लिए सरकार दो सीबीआई अफसरों को जिम्मेदारी सौंपती है|
सीबीआई अफसरों की भूमिका निभाई है सिद्धांत चतुर्वेदी बने (अक्षय खन्ना)और प्रताप कुमार बने(अजय देवगन)ने|इस हाइ प्रोफाइल केस मिलने से उत्साहित सिद्धांत को शुरुआत में यह केस जितना आसान नजर आता है दरसल उतना होता नहीं है| इस दौरान उसका राजनीतिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार से सामना होता है जिससे उसके होश उड़ जाते हैं|
अजातशत्रु(परेश रावल)एक भ्रष्ट पुलिस वाले की भूमिका में हैं जो झांझर में अपनी एक शूल सेना का मुखिया भी है जो समाज के ठेकेदार होने के नाते हॉनर किलिंग कर मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं|
सिद्धांत और प्रताप कैसे इस समस्या को सुलझा पाते हैं और इसमें गीता बनी बिपाशा बासु कैसे उनकी मदद करती हैं|फिल्म में यही दिखाया गया है|गीता पहले प्रताप(अजय देवगन)की प्रेमिका रह चुकी है मगर उसकी शादी जबरदस्ती अजातशत्रु से कर दी जाती है|
फिल्म मध्य में थोड़ी दिलचस्प होती है मगर बाद में कहानी कमज़ोर पड़ जाती है|फिल्म के दूसरे भाग में सबसे चौंकाने वाली बात तब नज़र आती है जब अचानक समाज में अभी तक हर समस्या पर आँख मूंदकर बैठे लोग आवाज़ उठाने लग जाते हैं और न्याय मांगने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं|
कमज़ोर स्क्रीन प्ले के चलते फिल्म की कहानी किस दिशा में जा रही है यह समझ ही नहीं आता|फिल्म का कमज़ोर निर्देशन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है|निर्देशक अच्छी कहानी पर पकड़ नहीं बना पाए|फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं मगर एडिटिंग और अच्छी हो सकती थी|
अभिनय की बात की जाये तो अजय देवगन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि गंभीर किरदार निभाने के मामले में वह लाजवाब हैं|अक्षय खन्ना अपने किरदार में बिल्कुल प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं|बिपाशा बासु का भी रोल कोई खास नहीं है हालांकि काफी राज़ उनकी ही मदद से खुलते हैं मगर उनके हिस्से में ज्यादा डायलॉग्स नहीं है|परेश रावल ने अजातशत्रु के रोल में जान डाल दी है| वहीँ रीमा सेन छोटे मगर प्रभावशाली रोल में नज़र आई हैं|कुल मिलकर देखा जाए तो फिल्म कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएं|
डायरेक्टर:प्रियदर्शन
कलाकार:अजय देवगन,अक्षय खन्ना,बिपाशा बासु,परेश रावल,रीमा सेन
रेटिंग:2
ऑनर किलिंग जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाना कोई आसान काम नहीं है और जब प्रियदर्शन जैसे मंझे हुए निर्देशक ऐसे मुद्दे पर फिल्म बनाएं तो उम्मीद लगाना लाजिमी है|ऐसे में यह सवाल उठाना कि क्या यह फिल्म समाज में फैली इस कुरीति को दर्शाने में सफल हो पाई है? जवाब है नहीं प्रियदर्शन की पिछली दो फिल्मों(खट्टा मीठा और दे दना दन)की तरह आक्रोश भी एक कमज़ोर फिल्म ही साबित हुई है|
अच्छा विषय होने के बावजूद भी यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होने में नाकामयाब नज़र आती है| कमज़ोर स्क्रीनप्ले और उबाऊ निर्देशन इस फिल्म को बेदम बना देते हैं|फिल्म की शुरुआत में दिल्ली और झांझर के चार मेडिकल स्टुडेंट्स को अगवा कर लिया जाता है|दिल्ली यूनिवर्सिटी के इन मेडिकल छात्रों को बिहार के झांझर से अगवा कर लिया जाता है|इन लड़कों को खोजने के लिए सरकार दो सीबीआई अफसरों को जिम्मेदारी सौंपती है|
सीबीआई अफसरों की भूमिका निभाई है सिद्धांत चतुर्वेदी बने (अक्षय खन्ना)और प्रताप कुमार बने(अजय देवगन)ने|इस हाइ प्रोफाइल केस मिलने से उत्साहित सिद्धांत को शुरुआत में यह केस जितना आसान नजर आता है दरसल उतना होता नहीं है| इस दौरान उसका राजनीतिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार से सामना होता है जिससे उसके होश उड़ जाते हैं|
अजातशत्रु(परेश रावल)एक भ्रष्ट पुलिस वाले की भूमिका में हैं जो झांझर में अपनी एक शूल सेना का मुखिया भी है जो समाज के ठेकेदार होने के नाते हॉनर किलिंग कर मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं|
सिद्धांत और प्रताप कैसे इस समस्या को सुलझा पाते हैं और इसमें गीता बनी बिपाशा बासु कैसे उनकी मदद करती हैं|फिल्म में यही दिखाया गया है|गीता पहले प्रताप(अजय देवगन)की प्रेमिका रह चुकी है मगर उसकी शादी जबरदस्ती अजातशत्रु से कर दी जाती है|
फिल्म मध्य में थोड़ी दिलचस्प होती है मगर बाद में कहानी कमज़ोर पड़ जाती है|फिल्म के दूसरे भाग में सबसे चौंकाने वाली बात तब नज़र आती है जब अचानक समाज में अभी तक हर समस्या पर आँख मूंदकर बैठे लोग आवाज़ उठाने लग जाते हैं और न्याय मांगने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं|
कमज़ोर स्क्रीन प्ले के चलते फिल्म की कहानी किस दिशा में जा रही है यह समझ ही नहीं आता|फिल्म का कमज़ोर निर्देशन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है|निर्देशक अच्छी कहानी पर पकड़ नहीं बना पाए|फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं मगर एडिटिंग और अच्छी हो सकती थी|
अभिनय की बात की जाये तो अजय देवगन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि गंभीर किरदार निभाने के मामले में वह लाजवाब हैं|अक्षय खन्ना अपने किरदार में बिल्कुल प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं|बिपाशा बासु का भी रोल कोई खास नहीं है हालांकि काफी राज़ उनकी ही मदद से खुलते हैं मगर उनके हिस्से में ज्यादा डायलॉग्स नहीं है|परेश रावल ने अजातशत्रु के रोल में जान डाल दी है| वहीँ रीमा सेन छोटे मगर प्रभावशाली रोल में नज़र आई हैं|कुल मिलकर देखा जाए तो फिल्म कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएं|
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