Monday, October 11, 2010

                    अक्सर जब हम देशप्रेम या साहित्य सेवा की बात करते है तो अंग्रेजी में बोलते है और सोचते है की बहुत अच्छा और बड़ा काम कर रहे है |हमारे बुद्धिजीवी कहते है की हिंदी भाषा विचारों को अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं और इसीलिए इसका व्यापक उपयोग नहीं हो सकता|इस बात से उनकी हीन भावना और अशिक्षा ही झलकती हैं|किसी भी भाषा का कितना अच्छा और व्यापक प्रोयोग हो सकता है |यह उस भासा पर नहीं,उस भासा के जानने वाले पर निर्भर करता है |अगर हम अपनी राष्ट्रियाभाषा को पढ़ ,लिख,समझ कर उसका व्यापक प्रोयोग नहीं कर सकते तो यह भाषा का नहीं हमारा दोष हैं |
                    विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओँ में हिंदी तीसरे स्थान पर हैं |फिर भी सहितियक और शैक्षिक महत्त्व में इसका स्थान फ्रेंच ,जर्मनी और जापानी भाषाओं से से बहुत निचे हैं |जिसके बोलने वाले हिंदी की तुलना में बहुत कम हैं |हिंदी भारत ,नेपाल ,इंडोनेशिया ,मलैय्शिया ,सूरीनाम,फिजी,गोयाना,मोरिसिऔस जैसे अनेक देशो में बोली जाती हैं ,फिर भी विडम्बना यह है की आज तक इसे अन्तेर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया हैं |इसका पर्मुख कारण भारतीयों में संकल्प की कमी हैं |अगर हम अपनी भाषा को अपने ही घर में ही नहीं बोल सकते तो इसे विश्व भाषा का दर्जा क्या दिलवाएंगे

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