अक्सर जब हम देशप्रेम या साहित्य सेवा की बात करते है तो अंग्रेजी में बोलते है और सोचते है की बहुत अच्छा और बड़ा काम कर रहे है |हमारे बुद्धिजीवी कहते है की हिंदी भाषा विचारों को अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं और इसीलिए इसका व्यापक उपयोग नहीं हो सकता|इस बात से उनकी हीन भावना और अशिक्षा ही झलकती हैं|किसी भी भाषा का कितना अच्छा और व्यापक प्रोयोग हो सकता है |यह उस भासा पर नहीं,उस भासा के जानने वाले पर निर्भर करता है |अगर हम अपनी राष्ट्रियाभाषा को पढ़ ,लिख,समझ कर उसका व्यापक प्रोयोग नहीं कर सकते तो यह भाषा का नहीं हमारा दोष हैं |
विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओँ में हिंदी तीसरे स्थान पर हैं |फिर भी सहितियक और शैक्षिक महत्त्व में इसका स्थान फ्रेंच ,जर्मनी और जापानी भाषाओं से से बहुत निचे हैं |जिसके बोलने वाले हिंदी की तुलना में बहुत कम हैं |हिंदी भारत ,नेपाल ,इंडोनेशिया ,मलैय्शिया ,सूरीनाम,फिजी,गोयाना,मोरिसिऔस जैसे अनेक देशो में बोली जाती हैं ,फिर भी विडम्बना यह है की आज तक इसे अन्तेर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया हैं |इसका पर्मुख कारण भारतीयों में संकल्प की कमी हैं |अगर हम अपनी भाषा को अपने ही घर में ही नहीं बोल सकते तो इसे विश्व भाषा का दर्जा क्या दिलवाएंगे
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