Friday, October 29, 2010

राधा कुण्ड कैसे बना

मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर्व द्वापरयुग में श्रीकृष्ण और राधा की लीला से संबंधित है। यह कथा बड़ी रोचक है।
पहले बना श्यामकुंड : राधा कुंड श्याम कुंड के बनने का परिणाम था। एक कथा के अनुसार, कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए ब्रज में अरिष्टासुर को भेजा। भयानक सांड़ का रूप धारण किए उस दैत्य ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया, परंतु वह उनके हाथों मारा गया। अरिष्टासुर का वध करने के बाद जब रात में श्रीकृष्ण राधारानी और गोपियों के साथ रासस्थल पहुंचे, तो भगवती राधा ने सखियों के उकसाने पर कहा कि आज आपने एक वृषभ की हत्या की है, अत: आपको प्रायश्चित करना होगा।
कथा के अनुसार, यह सुनकर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण करके उसमें भूमंडल के सारे तीर्थो का आवाहन कर दिया। देखते ही देखते सारे तीर्थो का जल कुंड में आ गया। श्रीकृष्ण ने कुंड में स्नान किया, जिसका नाम श्यामकुंड पड़ा।
राधारानी ने बनाया राधाकुंड : कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के कुंड बनाने पर राधाजी अलग स्थान पर कंगन से गड्ढा खोदने लगीं। उनकी सखियां भी उनके साथ जुट गई। वहां भी एक कुंड बन गया, परंतु उसमें जल भरने की समस्या थी। राधा अपनी सखियों के साथ घड़े लेकर मानसीगंगा से जब पानी भरकर लाने को उद्यत हुईं, तो श्रीकृष्ण के संकेत पर समस्त तीर्थ श्यामकुंड की सीमा तोड़कर राधाकुंड में प्रविष्ट हो गए।
ब्रज के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. वसंत यामदग्नि के अनुसार, 'यह घटना कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की आधी रात को घटी थी। राधाकुंड के निर्माण का कार्य संपन्न होने से प्रसन्न सखियों के मुख से 'आहा वोही' शब्दों का उच्चारण हुआ था, जो बाद में अपभ्रंश होकर अहोई हो गया। इसी कारण कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि अहोई अष्टमी कहलाने लगी।'
इस युग में कुंडों की खोज : कहा जाता है कि द्वापरयुग में बने ये दोनों कुंड श्रीकृष्ण के प्रपोत्र परपोते वज्रनाभ द्वारा महर्षि शांडिल्य की सहायता से खोजकर ठीक कराए गए। कालांतर में ये कुंड पुन: लुप्त हो गए। श्री चैतन्य महाप्रभु ने कालीखेत और गौरीखेत नाम के दो स्थानों, जहां थोड़ा-थोड़ा जल था, को ही क्रमश: श्यामकुंड और राधाकुंड बताया। बाद में श्री रघुनाथदास गोस्वामी जगन्नाथ पुरी से आकर यहां भजन करने लगे। कहते हैं कि मुगल सम्राट अकबर अपनी बहुत बड़ी सेना लेकर यहां से गुजर रहा था। उसकी सारी सेना, हाथी, घोड़े, ऊंट सभी प्यासे थे। अकबर यह देखकर हैरान रह गया कि उसकी सारी सेना के पानी पी लेने के बावजूद सरोवरों में जल का स्तर बिल्कुल नहीं गिरा। कुछ समय बाद बद्रीनाथ की यात्रा कर रहे एक धनी सेठ ने ब्रज में जाकर श्रीरघुनाथदास गोस्वामी के माध्यम से कुंडों का जीर्णोद्धार किया।
राधा-कृष्ण की तरह ही राधा कुंड और श्याम कुंड भी एक-दूसरे के पूरक हैं। कार्तिक के कृष्णपक्ष की अष्टमी अहोई अष्टमी राधाकुंड के निर्माण की तिथि होने के कारण इस दिन यहां मुख्य स्नान होता है। अहोई अष्टमी की अर्धरात्रि इस स्नान का पर्वकाल माना जाता है।               

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